मिर्जापुर के इन गांवों में दीपावली नहीं, शोक दिवस-चौहान समाज सैकड़ों वर्षों से निभा रहा अनोखी परंपरा

इन गांवों में चौहान समाज की लगभग 8 हजार की आबादी रहती है, जो सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को निभाती आ रही है.

इन गांवों में चौहान समाज की लगभग 8 हजार की आबादी रहती है, जो सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को निभाती आ रही है.

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Mohit Saxena
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dewali Photograph: (social media)

जहां एक ओर पूरा देश दीपावली के पर्व पर रोशनी, खुशियां और उत्साह में डूबा रहता है, वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में कुछ गांवों में इस दिन सन्नाटा और शोक का माहौल देखने को मिलता है. मड़िहान तहसील के राजगढ़ इलाके के अटारी गांव और उसके आसपास बसे मटिहानी, मिशुनपुर, लालपुर और खोराडीह जैसे गांवों में चौहान समाज के लोग दीपावली को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं. 

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इन गांवों में चौहान समाज की लगभग 8 हजार की आबादी रहती है, जो सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को निभाती आ रही है. दीपावली के दिन जब पूरा देश दीप जलाकर उल्लास मनाता है, तब ये लोग अपने घरों में दीप नहीं जलाते, पटाखे नहीं फोड़ते और किसी प्रकार का उत्सव नहीं मनाते. उनके लिए यह दिन दुख और श्रद्धांजलि का होता है.

परंपरा के पीछे एक ऐतिहासिक कथा जुड़ी

इस परंपरा के पीछे एक ऐतिहासिक कथा जुड़ी है. चौहान समाज के लोग स्वयं को अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वंशज बताते हैं. उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मोहम्मद गोरी ने वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी और उनके शव को गंधार (आज का अफगानिस्तान) ले जाकर दफनाया था. इसी कारण से चौहान समाज इस दिन को “शोक दिवस” के रूप में मनाता है.

पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा आज भी कायम

अटारी गांव इस परंपरा का केंद्र माना जाता है, जहां हर साल दीपावली के दिन विशेष रूप से श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है. ग्रामीण अपने पूर्वजों के शौर्य और बलिदान को याद करते हुए मौन रहते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा आज भी कायम है, और चौहान समाज के लोग इसे अपनी अस्मिता और इतिहास की स्मृति का प्रतीक मानते हैं. मिर्जापुर का यह अनोखा उदाहरण दिखाता है कि हर पर्व के पीछे एक कहानी और एक गहरी भावना छिपी होती है.

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