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sewer toxic gas sensor Photograph: (social)
Greater Noida: देशभर में अक्सर सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैसों के कारण कामगारों की मौत की खबरें सामने आती हैं. सुप्रीम कोर्ट तक इस गंभीर समस्या पर चिंता जता चुका है. इसी चुनौती का समाधान लेकर आई हैं नोएडा की युवा शोधकर्ता मोनिका जायसवाल, जिन्होंने कामगारों की सुरक्षा के लिए एक खास आईओटी आधारित गैस सेंसर तैयार किया है.
ऐसे करेगा काम
यह सेंसर कलाई पर पहने जाने वाले बैंड के रूप में विकसित किया गया है. गैस का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंचने पर यह लाल लाइट और कंपन (वाइब्रेशन) के जरिए कामगार को तुरंत अलर्ट कर देगा. खास बात यह है कि सेंसर की सूचना संबंधित ठेकेदार और कंट्रोल रूम तक भी पहुंच जाएगी. इससे न केवल कामगार की जान बच सकेगी बल्कि मौके पर तत्काल मदद भी पहुंचाई जा सकेगी.
मोनिका ने इस डिवाइस को 'नैनोविस्तार गैस सेंसर' नाम दिया है. यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और वर्तमान में विदेशी विकल्पों से लगभग 60 प्रतिशत तक सस्ता है. देश में अब तक इस्तेमाल होने वाले 95% सेंसर चीन, जापान और अमेरिका से आयात किए जाते हैं.
नवंबर से होगा लॉन्च
मोनिका बताती हैं कि अगस्त में डिवाइस का प्रोटोटाइप टेस्ट किया जाएगा और सुधार के बाद नवंबर 2025 से बाजार में इसकी बिक्री शुरू हो जाएगी. इस प्रोजेक्ट को एमएसएमई मंत्रालय से 10 लाख रुपये की ग्रांट भी मिली है. साथ ही, आईआईटी बॉम्बे के आईएनयूपी प्रोग्राम के तहत तकनीकी सहयोग मिल रहा है. डिवाइस को पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है.
किन गैसों पर करेगा काम
सेंसर हाइड्रोजन सल्फाइड (10 PPM), नाइट्रोजन ऑक्साइड (5 PPM) और अमोनिया (25 PPM) जैसी जहरीली गैसों का पता लगाएगा. यह जानकारी पहले से सेंसर में दर्ज होगी, ताकि निर्धारित सीमा से अधिक होने पर तत्काल चेतावनी मिल सके.
अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी
यह डिवाइस केवल सीवर सफाई तक सीमित नहीं है. मोनिका बताती हैं कि इसे खाद्य भंडारण में भी उपयोग किया जा सकता है. जैसे प्याज या आलू लंबे समय तक रखने पर सड़ने लगते हैं, ऐसे में सेंसर समय रहते अलर्ट कर देगा.
भारतीय जरूरतों के मुताबिक डिजाइन
मोनिका ने 2020 में नैनोविस्तार प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की थी. उनका लक्ष्य भारतीय उद्योगों और श्रमिकों की जरूरत के मुताबिक किफायती सेंसर उपलब्ध कराना है. उनका दावा है कि मौजूदा विदेशी सेंसर पुराने फॉर्मेट पर आधारित हैं और भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से उपयुक्त नहीं हैं.
फिलहाल, कंपनी डिवाइस की पैकेजिंग और मोबाइल एप्लिकेशन तैयार कर रही है. सरकारी एजेंसियों और निजी कंपनियों से शुरुआती बातचीत भी चल रही है, ताकि इस तकनीक को बड़े पैमाने पर उपयोग में लाया जा सके.
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