नरेंद्र गिरी केस की साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी, मौत से पहले चिड़चिड़े हो गए थे महंत
Narendra Giri case Psychological autopsy : केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के सुसाइड केस में साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी कराई है.
प्रयागराज:
Narendra Giri case Psychological autopsy : केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के सुसाइड केस में साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी कराई है. सीबीआई ने श्री बाघंबरी गद्दी मठ में चौथे दिन मंगलवार को भी महंत नरेंद्र गिरि के करीबी सेवादारों से गहराई से पूछताछ की है. कई सेवादारों ने बताया कि बीते कुछ दिनों से महंत नरेंद्र गिरी बात-बात पर चिल्ला उठते थे. सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (CFSL) के विशेषज्ञों ने सुसाइड से पहले महंत की मनोदशा, उनके व्यवहार, हाव-भाव से संबंधित कई सवाल सेवादारों से किए.
सीबीआई की पूछताछ में एक बात सामने आई है कि मौत से 1 सप्ताह पूर्व से महंत नरेंद्र गिरि चिड़चिड़े हो गए थे. बात-बात पर वे सेवादारों पर चिल्ला उठते थे. साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी के सहारे सीबीआई यह जानने की कोशिश कर रही है कि महंत नरेंद्र गिरि की मौत से पहले मानसिक स्थिति कैसी थी. सीबीआई की यह एक्सरसाइज एक तरह से दिमाग का पोस्टमार्टम करने जैसी है. सीबीआई की टीम ने सेवादारों से नरेंद्र गिरि के पहनावे, बोलचाल, व्यवहार के बारे में सवाल किए. उनके खान-पान के तरीके में किसी प्रकार का अगर कोई बदलाव आया हो तो उसे नोट किया. उनके इर्द-गिर्द रहने वाले सेवादारों से पूछताछ की गई.
सीबीआई ने ये सवाल किए
- बातचीत की टोन में बदलाव आया था क्या? बहुत शांत हो गए थे या बहुत अग्रेसिव हो गए थे?
- उनकी दिनचर्या, पहनावे, प्रतिक्रिया देने में किसी तरह का बदलाव आया था क्या?
- कोई उलझन तो नहीं थी?
- क्या कभी मरने की बात की थी? क्या कभी कहा था कि अब जीने का मन नहीं करता?
- क्या कपड़े पहनने में किसी प्रकार का बदलाव आया?
जानकारों के मुताबिक सामान्य तौर पर अटॉप्सी डेड बॉडी का किया जाता है. साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी अधिकतर सुसाइड (आत्महत्या ) के केस में किया जाता है. इसके माध्यम से यह पता किया जाएगा कि महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु से पहले मनोदशा कैसी थी? इस जांच में उसके सोचने का तरीका, उसने मरने के कुछ दिनों पहले क्या किया था? उसका बेहिवियर कैसा था? यह सब कुछ जानने की कोशिश की जाती है.
आत्महत्या के दिन के पिछले दो हफ्ते काफी अहम होते हैं. मरने के एक से दो हफ्ते पहले की कहानी तैयार की जाती है. यह कहानी जांच में इकट्ठा की गई जानकारी के आधार पर तैयार की जाती है. अलग-अलग जानकारी के आधार पर एक्सपर्ट यह तय करते हैं कि यह आत्महत्या है या हत्या इसके साथ ही कहीं कोई एक्सीडेंट तो नहीं है.
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