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मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से था गहरा जुड़ाव, गांधी जी आह्वान पर यहीं कथा सम्राट बने स्वाधीनता सेनानी 

उपन्यास और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की रविवार को 142वीं जयंती है. कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जन्म भले ही लमही में लिया हो, लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर ही बनी. इस शहर में मुंशी जी पढ़े तो पढ़ाए भी.

Updated on: 31 Jul 2022, 06:53 PM

गोरखपुर:

उपन्यास और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की रविवार को 142वीं जयंती है. कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जन्म भले ही लमही में लिया हो, लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर ही बनी. इस शहर में मुंशी जी पढ़े तो पढ़ाए भी. इसी धरती पर पहली बार उन्होंने उर्दू लिखना शुरू किया. दो बैलों की जोड़ी, ईदगाह, रामलीला, बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन जैसी उनकी कालजयी कृतियों की पृष्ठभूमि गोरखपुर में ही तैयार हुई थी. यहीं उन्हें मन्नन द्विवेदी गजपुरी और फिराक गोरखपुरी जैसे लोगों का साथ मिला. इसी शहर में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर 1921 में अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था और स्वाधीनता सेनानी बने.

अपनी कहानियों, उपन्‍यासों के द्वारा मुंशी प्रेमचंद ने आजादी से पहले जो भारत की स्थिति बयां की, कमोबेश आज भी हम अपने आसपास वही स्थिति और प्रेमचंद के उन्‍हीं पात्रों को जीवंत देखते हैं. उपन्यास और कथा सम्राट माने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से विशेष लगाव था. 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद वर्ष 1894 में अपने पिता के साथ गोरखपुर आ गए और यहां नार्मल स्थित रावत पाठशाला में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की. बाद में 1916 में वह यहीं पर अध्‍यापक के रूप में आए. 

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गोरखपुर में रहने के दौरान ही उनकी मुलाकात महावीर प्रसाद पोद्दार से हुई और उनके कहने पर ही प्रेमचंद ने सेवा सदन जैसा उपन्यास लिखा. प्रेमचंद जहां रहते थे, उस स्थान को अब प्रेमचंद पार्क बना दिया गया है. यहीं रहते हुए 1920 में असहयोग आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी यहां बाले के मैदान में आए तो प्रेमचंद ने उनका भाषण सुना और फिर चार दिन बाद सरकारी सेवा से त्याग पत्र देकर स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए. एक अध्‍यापक से एक स्‍वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रेमचंद का कायाकल्‍प इसी घर में रहते हुए हुआ.

प्रेमचंद की लिखी कहानी ईदगाह के पात्र और वह जगह यहीं पर हैं. जिस ईदगाह में हामिद अपने गांव के लोगों के साथ जाकर चिमटा खरीदता है उस जगह पर अब मुबार‍क खां शहीद की दरगाह है. इसके अलावा उनकी कहानियों और उपन्‍यासों के अधिकतर पात्र इसी इलाके से गढ़े गए हैं. प्रेमचंद जिस मकान में अपने बचपन के दिनों में रहा करते थे वह मकान अब धराशायी हो चुकी है और उनकी याद में बना संग्रहालय भी ध्‍वस्‍त होने के कगार पर है. इसके साथ ही अपने अध्‍यापकी के दिनों में जहां पर प्रेमचंद का निवास था वह जगह गोरखपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के द्वारा अधिग्रहित करके वहां पर एक पार्क बनाया गया है. 

पिछले कुछ सालों में सरकारी अनदेखी की वजह से मुंशी प्रेमचंद का घर दरकने लगा था, जिसे अब जीडीए के उपाध्यक्ष प्रेमरंजन सिंह के प्रयासों की बदौलत रंगरोगन और मरम्मत नसीब हो रहा है. हालांकि, मुंशी प्रेमचंद के चाहने वालों ने उनकी विरासत को बचाने की मुहिम पिछले एक दशक से छेड़ रखी है और वह प्रेमचंद के घर तथा उनके स्‍मृतियों को संजोने और जन जन तक पहुचांने में लगे हुए हैं. इसमें प्रोफेसर, पत्रकार और रंगमंच के कलाकार सभी शामिल हैं.

प्रेमचंद साहित्‍य संस्‍थान के सचिव मनोज सिंह और इप्टा के सबसे वरिष्ठ कलाकार मुमताज खान का कहना है कि मुंशी प्रेमचंद की विरासत को बचाने के लिए प्रेमचंद साहित्‍य संस्‍थान के सभी सदस्‍यों ने उनके लिखे सभी पुस्‍तकों और संग्रहों को इकट्ठा कर एक लाइब्रेरी का रूप दिया है और यहां पर पुस्‍तकों का मेला लगाकर लोगों को प्रेमचंद के साहित्‍य पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं. इसके साथ ही यहां पर प्रेमचंद के आवास को भी संरक्षित और पुर्ननिर्माण के लिए स्‍थानीय लोगों के सहयोग से कार्य किया गया है. 

इन लोगों की योजना है कि यहां पर प्रेमचंद की विरासत को आने वाली पीढ़ी जाने और प्रेमचंद के विचारों और आदर्शों को समझ सके. इनके प्रयास से ही यहां पर अब लोग आने लगे हैं और प्रेमचंद के साहित्‍य को पढ़ते हैं. साथ ही यहां पर प्रेमचंद के कहानियों और उपन्‍यासों के पात्रों को भी इप्टा के कलाकार नाटकों के माध्‍यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं. 

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प्रेमचंद जयंती के दिन गोरखपुर के सभी साहित्‍यकारों और प्रेमचंद के चाहने वालों ने प्रेमचंद की मूर्ति को माल्‍यार्पण कर उनको याद किया और उनकी याद में गोष्ठी एवं नाटक किया. इन सबके प्रयासों के कारण आज प्रेमचंद से जुड़ी स्‍मृतियां फिर से लोगों को दिखने लगी हैं और जिस शहर में प्रेमचंद ने अपना बचपन और जवानी बिताया, वहां के लोग अब उनको अपने शहर से जुड़ा पाकर खुद को गर्व महसूस करने लगे हैं. 

यहां पर आने वाले लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में प्रेमचंद के साहित्य को लेकर गोरखपुर में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है. स्कूल की किताबों से प्रेमचंद की कहानियां भले ही धीरे-धीरे गायब हो रही हो, लेकिन आज की युवा पीढ़ी प्रेमचंद को पढ़ने और उनके साहित्य की गहराइयों को समझने के लिए यहां पर आ रही है, जो एक बदलाव का सुखद संदेश है.