उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के मोतीपुर रेंज के जंगल में मिली 'मोगली गर्ल' यानी जानवरों के बीच पली-बढ़ी बच्ची को शनिवार को बहराइच के जिला अस्पताल से छुट्टी मिल गई। अब उसका नया घर नवाबों का शहर लखनऊ होगा।
उसे विदा करते समय उसकी देखभाल करने वाली सफाईकर्मी रेनू और माया की आंखों से आंसू झरने लगे। जानवरों के बीच पली-बढ़ी बच्ची की देखभाल और उसे 'इंसान' बनाने के उपाय लखनऊ के जानकीपुरम स्थित दृष्टि सामाजिक सेवा संस्थान में होगा।
ये बच्ची किसकी है, कहां की है, यह किसी को नहीं पता। बच्ची कब से जंगल में जानवरों के बीच थी, यह भी कोई नहीं बता पा रहा है। वह पहले इंसानों से डरती थी। बंदरों की तरह दोनों हाथों और पैरों से चलती थी और उसकी की तरह चीखती थी। न कपड़े पहनती थी न पहनना जानती थी। जानवरों की तरह खाना भी खाती थी। उसके बाल बड़े-बड़े थे, जिसे अब कटवाया गया है और उसे फ्रॉक व पेंट पहनाया गया है।
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जुवेनाइल कोर्ट ने 'मानसिक मंदता' के मद्देनजर मोगली गर्ल को दृष्टि सामाजिक सेवा संस्थान में भेजने का निर्णय लिया है। चाइल्ड लाइन ने उसे लखनऊ ले जाने की हामी भरी थी। वहां उसे अन्य बच्चों के साथ रखा जाएगा और उसे मानवीय व्यवहार सिखाए जाएंगे। कुशल मानसिक चिकित्सकों से इलाज भी कराया जाएगा।
सुबह छह बजे से ही अस्पताल के गेट पर भारी भीड़ खड़ी थी, क्योंकि आज (शनिवार) बहुचर्चित मोगली लखनऊ के लिए जाने वाली थी। लोग मोगली नाम से चर्चित उस बच्ची को देखना चाहते थे, जिसकी लोगों ने बहुत चर्चा सुनी थी।
एंबुलेंस गेट पर खड़ी मोगली की इंतजार कर रही थी और जिला अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में लोगों का तांता लगा था। लोग उसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए बेताब दिख रहे थे।
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मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. डी.के. सिंह वार्ड में पहुंचकर मोगली को लखनऊ भेजने के लिए तैयार थे। मोगली की करीबी माने जाने वाली स्वीपर रेनू व माया को बुलाया गया। रेनू, मोगली को अपनी गोद में लेकर गेट पर इंतजार में खड़ी एंबुलेंस की ओर चल पड़ी और पूरी भीड़ उसके आगे-पीछे। जैसे जैसे एंबुलेंस करीब आ रहा था, अस्पताल कर्मियों के चेहरे पर मायूसी छा रही थी।
एंबुलेंस के पास पहुंचते-पहुंचते रेनू और माया की आंखों से आंसू झरने लगे। मीडिया के सवाल पर रेनू ने कहा, "ढाई महीने से मैं और माया ही इसकी सेवा कर रही हैं। आज लग रहा है, जैसे मेरी बेटी मुझसे अलग हो रही है।"
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मोगली जब लखनऊ के लिए रवाना हुई, तो उसके बाद सीएमएस डॉ. सिंह मीडिया से रूबरू हुए। वह उसके बारे में बात कर ही रहे थे कि अचानक उनकी आंखें नम हो गईं, वह रोने लगे।
उन्होंने कहा, 'आज वो लखनऊ जा रही है। कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। मैं और मेरे स्टाफ ने उसका अपनी बेटी से ज्यादा ख्याल रखा।'
डॉ. सिंह ने स्वीपर रेनू और माया को एक-एक हजार रुपये का पुरस्कार दिया है। उन्होंने बताया कि जब से यह बच्ची अस्पताल में आई है, ये दोनों ही उसकी देखरेख कर रही थीं।
कतर्नियाघाट सैंक्चुअरी के मोतीपुर रेंज में गश्त कर रहे एसआई सुरेश यादव को 25 जनवरी को जंगल में बंदरों से घिरी चार साल की एक निर्वस्त्र बच्ची दिखाई दी थी। सुरेश ने जब बच्ची को अपने साथ लाना चाहा तो बंदर विरोध पर उतर आए और चीखना शुरू कर दिया। बच्ची भी पुलिसकर्मियों को देख बंदरों की तरह चीखने लगी, लेकिन पुलिसकर्मियों ने कड़ी मशक्कत के बाद उसे साथ लिया और जिला अस्पताल लाकर भर्ती कराया।
बच्ची के शरीर पर जंगली जानवरों के काटने के जख्म थे। बच्ची न तो इंसानी भाषा समझ पाती है और न ही बोल पाती है। हालांकि ढाई महीने के दौरान उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आया है। उसका इंसानों से डरना कुछ कम हुआ है। अब खड़े होकर पैरों के बल चलना सीख गई है, लेकिन कभी-कभी हाथों और पैरों के बल भी चलती है। अभी भी बंदरों की तरह चीखती है।
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Source : IANS