प्रयागराज में महाकुम्भ तो काशी में होगा अर्ध कुम्भ, आएंगे 35 करोड़ से अधिक श्रद्धालु

काशी में अर्ध कुम्भ जैसा नजारा दिखाई देगा, रेलवे स्टेशन हो या बस स्टैंड, गंगा घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर में हर जगह खास व्यवस्था की गई है. 

काशी में अर्ध कुम्भ जैसा नजारा दिखाई देगा, रेलवे स्टेशन हो या बस स्टैंड, गंगा घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर में हर जगह खास व्यवस्था की गई है. 

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Mohit Saxena
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प्रयागराज महामकुम्भ में 44 करोड़ से अधिक श्रद्धालु के आने की उम्मीद है, तो काशी   में 35 करोड़ से अधिक लोग आएंगे ऐसे में माना जा रहा है की वाराणसी में अर्ध कुम्भ जैसा नजारा दिखाई देगा. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. वाराणसी में रेलवे स्टेशन   हो या बस स्टैंड, गंगा घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर हर जगह खास व्यवस्था रखी गई है.  

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वाराणसी नगर निगम हो फिर पर्यटन विभाग काशी में कुम्भ से आने वाले श्रद्धलुओ के स्वागत की खास तैयारियां कर रहा है. वाराणसी के मेयर के अनुसार, लगभग 35 करोड़  से अधिक श्रद्धालु काशी जिसकी तैयारी नगर निगम वाराणसी अभी से ही कर रहा है ताकि किसी को कोई असुविधा न हो. वाराणसी के पर्यटन अधिकारी कहते है की महाकुम्भ के दौरान काशी में भी नजारा कुम्भ से कम नहीं होगा काशी के पर्यटन उधोग को ये कुम्भ नयी उंचाइयों पर ले जाएगा.

प्रयागराज महाकुम्भ में जो जायेगा वो काशी जरूर आएगा

माना  तो ये जा रहा है की जो भी प्रयागराज महाकुम्भ में जो जायेगा वो काशी जरूर आएगा ऐसे में पर्यटन विभाग भी हर एक जगह अपनी पर्यटन चौकी के साथ पूरी तरह तैयार है. इस दौरान काशी के हर एक व्यवसाय में भी खासा बढ़ने की आशंका है. सभी को रोजगार  भी मिलेगा. पर्यटन विभाग अपनी तैयारी पूरी कर चुका है. 

काशी के जानकार बताते है महाकुम्भ में काशी का खास महत्व है. यहां मां गंगा के साथ बाबा विश्वनाथ है और बिना उनके हर एक धार्मिक आयोजन व्यर्थ सा है. इसलिए जो भी प्रयागराज के महाकुम्भ में आएगा वो काशी का रुख जरूर करेगा. इससे न सिर्फ पर्यटन बढ़ेगा बल्कि काशी वासियो को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे. साथ ही काशी विद्वत परिषद् भी ये बताता है की काशी का क्या रिश्ता है. 

नागा साधु काशी लौटेंगे

महाकुंभ प्रयागराज से इसके साथ ही महाकुंभ में बसंत पंचमी पर स्नान के बाद बनारस के अखाड़ों के अलावा नागा साधु काशी लौटेंगे. यहां पर शोभायात्रा निकालकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करेंगे. होली तक काशी में रहेंगे. इसके बाद साधु-संत अपने अखाड़ों के लिए लौट जाएंगे. हर अखाड़ों के अपने देवता भी होते हैं. सभी उनके दर्शन पूजन करते हैं.

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