लॉकडाउन के चलते पड़े खाने को लाले, राशन के लिए 2500 में बेचना पड़ा मोबाइल, फिर फांसी के फंदे से झूल गया

हरियाणा के गुरुग्राम में मजदूरी के लिए बिहार से आए एक मजदूर ने गुरुवार को फांसी के फंदे से झूल गया. अपने पीछे माता-पिता, पत्नी और चार बच्चे को छोड़ दिया.

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Sushil Kumar
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प्रतीकात्मक फोटो

प्रतीकात्मक फोटो( Photo Credit : फाइल फोटो)

Coronavirus (Covid-19) : कोरोना (Corona) के कहर के चलते पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ है. जिससे प्रवासी मजदूरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन (Lockdown) का सबसे ज्यादा मार मजदूरों पर पड़ी है. काम नहीं मिलने के कारण खाने को लाले पड़ रहे हैं. हालांकि सरकार सभी को खाना पहुंचाने के लिए मशक्कत कर रही है. लेकिन सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी कई गांवों और परिवारों में राशन नहीं पहुंचा है. जिसके चलते भूख ने चारों तरफ से लोगों को घेर लिया है. कोरोना से मरने से पहले ही लोग भूख से मरने लगे हैं. इससे तंग आकर मजदूरों के आत्महत्या के मामले में सामने आने लगे हैं.

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फांसी लगाकर दे दी जान

हरियाणा के गुरुग्राम में मजदूरी के लिए बिहार से आए एक मजदूर ने गुरुवार को फांसी के फंदे से झूल गया. अपने पीछे माता-पिता, पत्नी और चार बच्चे को छोड़ दिया. सबसे छोटा बच्चा पांच महीने का है. अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 35 वर्षीय छबु मंडल बिहार के रहने वाले थे. गुरुग्राम में वह काफी समय से मकान में पेंटिंग का काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से काम मिलना बंद हो गया था. पहले के जो पैसे बचे थे, धीरे-धीरे सब खत्म हो गए. इसके बाद खाने के लाले पड़ने लगे. गुरुवार सुबह राशन खरीदने के लिए छबु मंडल ने अपना मोबाइल बेच दिया.

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दो दिन से भूखा था परिवार

मोबाइल के बदले में 2500 रुपये मिले. इससे उन्होंने घर का कुछ राशन और एक पंखा खरीदा. इसके बाद शाम को ही घर के पीछे फांसी के फंदे से झूल गया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक छबु मंडल डीएलएफ फेज-5 के पीछे सरस्वती कुंज में बनी झुग्गियों में रहते थे. परिवार के लोग बुधवार से ही भूखा था. ऐसे में जब घर में राशन आया, तो पत्नी पूनम तुरंत खाना बनाने में जुट गई. खाना बनाने से पहले वह नहाने के लिए बाथरूम गई थी. जबकि, बच्चे दादा-दादी के साथ घर के बाहर खेल रहे थे. बताया जा रहा है कि इसी दौरान मंडल ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और साड़ी का फंदा बनाकर झूल गया. पड़ोसियों की मदद से ही छबु का अंतिम संस्कार हुआ.

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