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विवादित ढांचा विध्‍वंस : 17 साल लगे थे लिब्रहान आयोग को जांच करने में, खर्च हुए थे 8 करोड़ रुपये

अयोध्‍या में विवादित ढांचा विध्‍वंस की जांच के लिए तत्‍कालीन कांग्रेस की सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया था. साल दर साल आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और जांच पूरी होने व रिपोर्ट देने में आयोग को 17 साल लग गए थे.

Updated on: 06 Dec 2018, 10:54 AM

नई दिल्ली:

अयोध्‍या में विवादित ढांचा विध्‍वंस की जांच के लिए तत्‍कालीन कांग्रेस की सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया था. साल दर साल आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और जांच पूरी होने व रिपोर्ट देने में आयोग को 17 साल लग गए थे. 16 दिसंबर 1992 में आयोग बना और आयोग ने 30 जून 2009 को अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी. माना जाता है कि लिब्रहान आयोग देश में अब तक का सबसे लंबा चलने वाला जांच आयोग है, जिस पर करीब 8 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. आयोग को तीन माह में रिपोर्ट देनी थी, लेकिन रिकॉर्ड 48 बार इसका कार्यकाल बढ़ाया गया.

आयोग की आखिरी सुनवाई अगस्त 2005 में कल्याण सिंह के बयान से पूरी हुई थी. आयोग के समक्ष पीवी नरसिम्हा राव, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और मुलायम सिंह यादव, कल्‍याण सिंह के अलावा कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों ने पेश होकर अपने बयान दर्ज कराए थे. विकीपिडिया के अनुसार, नवम्बर 2009 में रिपोर्ट के कुछ हिस्से मीडिया के हाथ लग गये, जिसके चलते संसद में बड़ा हंगामा हुआ था.

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लिब्राहन आयोग की इस रिपोर्ट को 24 नवंबर 2009 को संसद में पेश किया गया था. इसमें बाबरी विध्वंस को सुनियोजित साजिश करार देते हुए आरएसएस और कुछ अन्‍य संगठनों की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री की भूमिका पर भी आयोग ने सवाल उठाए थे.

आयोग को निम्न बिंदुओं की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था:
1. 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित परिसर में घटीं घटनाएं और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ.
2. राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के विध्वंस के संबंध में मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद के सदस्यों, उत्तर प्रदेश की सरकार के अधिकारियों और गैर सरकारी व्यक्तियों, संबंधित संगठनों और एजेंसियों द्वारा निभाई गई भूमिका.
3. निर्धारित किये गये या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा व्यवहार में लाये जाने वाले सुरक्षा उपायों और अन्य सुरक्षा व्यवस्थाओं में कमियां जो 6 दिसम्बर 1992 को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद परिसर, अयोध्या शहर और फैजाबाद मे हुई घटनाओं का कारण बनीं.
4. 6 दिसम्बर 1992 को घटीं प्रमुख घटनाओं का अनुक्रम और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते अयोध्या में मीडिया कर्मियों पर हमला हुआ था.
5. जांच के विषय से संबंधित कोई भी अन्य मामला.

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68 लोगों को आयोग ने ठहराया गया था दोषी
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जिन 68 लोगों को दोषी ठहराया था, उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, शिव सेना अध्यक्ष बाल ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन, केएन गोविंदाचार्य, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और प्रवीण तोगड़िया के नाम भी थे. रिपोर्ट में तत्‍कालीन मुख्यमंत्री कल्‍याण सिंह को घटना का मूकदर्शक बताते हुए आयोग ने तीखी टिप्‍पणी की थी. आयोग का कहना था कि कल्‍याण सिंह ने इस घटना को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और आरएसएस को अतिरिक्त संवैधानिक अधिकार दे दिए.