लखनऊ में किंग जॉर्ज्स मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) ने कोविड-19 के परीक्षण करने की अपनी क्षमता दोगुनी कर ली है. विश्वविद्यालय ने हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा मंजूर किए गए एंटीबॉडी परीक्षण शुरू करने का निर्णय लिया है. ये परीक्षण संदिग्ध मामलों पर होने हैं. केजीएमयू के कुलपति प्रोफेसर एम.एल.बी.भट्ट ने कहा कि केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में दो मशीनें थीं, जो 24 घंटे में 180 कोरोना परीक्षण कर सकती थीं. अब हमें दो और यूनिट प्राप्त हुई हैं, जो कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम और आईसीएमआर से मिली हैं. इससे हम अब प्रतिदिन 360 परीक्षण कर सकते हैं.
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इससे गलती होने की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है
लैब का कामकाज सुचारू रूप से सुनिश्चित करने के लिए, केजीएमयू ने कर्मचारियों की संख्या को भी दोगुना कर दिया है. कुलपति ने कहा कि तेजी से एंटीबॉडी परीक्षण करने में एक नमूने को तीन भागों में विभाजित किया जाता है और फिर एक के बाद एक उनके परीक्षण किए जाते हैं इससे गलती होने की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है. उन्होंने यह भी कहा कि केजीएमयू में वर्तमान में केवल 1,500 नमूनों का परीक्षण करने के लिए रीएजेंट्स हैं. हालांकि, अगले दो दिनों में और किट आ जाएंगे. किसी व्यक्ति के रक्त के नमूने में कोरोनोवायरस के एंटीबॉडी की उपस्थिति की जांच करने के लिए रैपिड एंटीबॉडी या स्ट्रिप टेस्ट किया जाता है.
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रोगी के स्वाब के नमूनों को प्रयोगशाला में पुष्टि के लिए भेजा जा सकता है
स्ट्रिप टेस्ट की मदद से यह आंकलन किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति संक्रमित है या नहीं. इस परीक्षण के बाद, यदि जरूरत हो तो रोगी के स्वाब के नमूनों को प्रयोगशाला में पुष्टि के लिए भेजा जा सकता है. स्ट्रिप टेस्ट जल्दी से किया जा सकता है और इससे संदिग्ध मामलों को आसानी से पहचानने में मदद मिलती है. जब से राज्य में कोविड-19 के मामले सामने आने शुरू हुए हैं. चिकित्सा विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉक्टरों, अनुसंधान विद्वानों और प्रयोगशाला सहायकों की 15 लोगों की एक टीम फरवरी से चौबीसों घंटे काम कर रही है.