केशव मौर्य ने Twin Towers को बतया सपा के भ्रष्टाचार का सबूत, SP ने ट्वीट कर लगाया ये आरोप

देश की 100 बड़ी इमारतों में से एक नोएडा का ट्विन टावर भ्रष्टाचार का एक उदाहरण था जिसमें न केवल बिल्डर बल्कि सरकारी अधिकारी भी कथित रूप से शामिल थे.

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Pradeep Singh
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केशव प्रसाद मौर्य( Photo Credit : News Nation)

रविवार को नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर्स के विध्वंस से  उत्तर प्रदेश की राजनीतिक में आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी के राज्य में सत्ता में रहने के दौरान भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया है. उपमुख्यसंत्री को इस आरोप का समाजवादी पार्टी ने तत्काल जवाब दिया है. हमले का जवाब देते हुए, सपा ने भाजपा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि सुपरटेक के मालिक भगवा पार्टी के साथ "गठबंधन" कर रहे थे.

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इमारत के मानदंडों का उल्लंघन करने के बाद दोनों इमारतों को अंततः सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार धवस्त कर दिया गया . मौर्य ने कहा, “नोएडा का सुपरटेक ट्विन टावर्स प्रोजेक्ट समाजवादी पार्टी के भ्रष्टाचार और अराजकता का जीता जागता सबूत है. आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सपा के कुकर्मों की निशानी इस अवैध इमारत को धराशायी किया जा रहा है. यही न्याय है, यही सुशासन है."

सपा के मीडिया प्रकोष्ठ ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट्स की एक श्रृंखला में लिखा, “सुनो श्री केपी मौर्य, इस भ्रष्टाचार के निर्माण के लिए जिम्मेदार भाजपा, क्योंकि सुपरटेक भी भाजपा को दान देता है और  बीजेपी के साथ दलाली करता है... कसम खाओ कि आपने सुपरटेक से पैसे नहीं लिए और इसके भ्रष्टाचार में भागीदार नहीं हैं?"

सपा के मीडिया सेल ने ट्वीट किया, “जुड़वां टावरों को तोड़ने का फैसला अदालत का है; भाजपा इस अपराध में सहयोगी थी और अब भागकर विपक्ष पर आरोप लगा रही है. क्या हम आपको बताने के लिए और सुपरटेक के साथ "सेटिंग" में शामिल भाजपा नेताओं के नाम सार्वजनिक करें? आप स्वयं भ्रष्ट हैं! जब भ्रष्टाचारियों का भ्रष्टाचार पकड़ा जाता है, तो वे दूसरों पर जोर से हमला करते हैं ... "

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रविवार को सुपरटेक जुड़वां इमारतों को विस्फोटक का इस्तेमाल करके ध्वस्त कर दिया गया था. देश की 100 बड़ी इमारतों में से एक नोएडा का ट्विन टावर भ्रष्टाचार का एक उदाहरण था जिसमें न केवल बिल्डर बल्कि सरकारी अधिकारी भी कथित रूप से शामिल थे. खरीदारों ने 1 करोड़ रुपये की लागत से सुपरटेक के खिलाफ 10 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. इसके बाद अगस्त 2021 में पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों टावरों को अवैध बताते हुए इन्हें गिराने के निर्देश दिए थे.

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