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काशी का 130 साल पुराना आर्यभाषा पुस्तकालय दस महीने बाद खुला.....अब पांडुलिपि से लेकर लाखो पुस्तक होगी संरक्षित

ये इमारत 130 साल पुरानी पुस्तकालय हैं. नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला दस महीने  कोर्ट के निर्देश पर खोला गया हैं. हिंदी के सबसे प्राचीन आर्यभाषा पुस्तकालय का भवन अब एक हेरिटेज है.

Updated on: 28 Feb 2024, 11:23 PM

नई दिल्ली:

काशी के 130 साल पुराने नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला दस महीने बाद खोला गया. पुस्तकालय में करीब 25 लाख पुस्तकें हैं. पांच लाख पन्नों वाली 50 हजार पांडुलिपियां भी हैं. इन पांडुलियों की  सुध 25 वर्षों से नहीं ली गई है. अब सफाई शुरू हुई है. इन पुस्तकों और पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाएगा. उनका प्रकाशन होगा देखिए काशी के सबसे पुराने आर्यभाषा पुस्तकालय से खास रिपोर्ट... ये इमारत 130 साल पुरानी पुस्तकालय हैं. नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला दस महीने  कोर्ट के निर्देश पर खोला गया हैं. हिंदी के सबसे प्राचीन आर्यभाषा पुस्तकालय का भवन अब एक हेरिटेज है. दरअसल यहां भाषा और साहित्य का एक अनूठा संग्रहालय है. हस्तलेखों का इतना बड़ा संग्रह कहीं और नहीं है. अनुपलब्ध और दुर्लभ ग्रंथों का ऐसा संकलन भी कहीं और मिलना मुश्किल है. आधी सदी पहले तक हिंदी के जानेमाने विद्वान अपने निजी पुस्तक-संग्रह इस पुस्तकालय को प्रदान करते रहे थे.

25 लाख पुस्तकें और 50 हजार पांडुलिपियां का ताला खोला

1893 में स्थापित इस संस्था ने 50 साल तक हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों की खोज का देशव्यापी अभियान चलाया. 25 लाख पुस्तकें और 50 हजार पांडुलिपियां का ताला खोला. अब पुस्तकालय का जीर्णोद्धार कराया जाएगा. इनमें दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह हैं. इन पुस्तकों और पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाएगा. उनका प्रकाशन होगा. हजारों हस्तलेख के साथ ही मुगलकाल, अंग्रेजों के समय के सरकारी गजट भी जैसे-तैसे पड़े हैं. पुस्तकालय में अप्रैल 2023 से ताला बंद था. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुस्तकालय खोलने का आदेश दिया था. इसका अनुपालन सुनिश्चित कराया गया है.

25 हजार दुर्लभ पुस्तकें आमजन के लिए सुलभ होंगी

नागरी प्रचारिणी सभा का वैभव फिर लौटेगा. 50 हजार पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ ही सभा की 25 हजार दुर्लभ पुस्तकें आमजन के लिए सुलभ होंगी. सभा के फिर से जीवंत होने पर हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों और शोधार्थियों का हिंदी संसार समृद्ध होगा. अब पांडुलिपियों के संरक्षण और डिजिटाइजेशन के साथ ही उनका  डाटाबेस तैयार करने का निर्णय लिया गया है. 

इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को मिली है. पहले चरण में 30 लोगों का चयन कर उन्हें पांडुलिपि-संरक्षण में प्रशिक्षित किया जाएगा. फिर उनसे ही पांडुलिपि संरक्षण का काम कराया जाएगा. सभा में ही एक पांडुलिपि लैब बनेगी. पांडुलिपियों में सौ वर्ष से अधिक के प्राचीन साहित्य, पत्रिकाएं और हस्तलिखित दस्तावेज हैं.

आचार्य महावीर प्रसाद ने जूही के नाम से संग्रहीत किया था

सबसे महत्वपूर्ण सभा की पत्रिका सरस्वती के लिए लिखे गए स्वीकृत और अस्वीकृत लेख, कहानियां, कविताएं हैं. इसे आचार्य महावीर प्रसाद ने जूही के नाम से संग्रहीत किया था और सभा को दान दिया था. जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंद दुलारे वाजपेयी, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, चंद्रधर शर्मा गुलेरी की रचनाएं प्रमुख हैं. इसे संरक्षित कर अब नई पीढ़ी के सामने लाई जायेंगी.