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बाघों के संरक्षण को CM योगी आदित्यनाथ ने दिया जोर, संख्या बढ़ाने पर कही ये बातें

International Tiger Day 2022 : गोरखपुर में शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर ट्रांसबॉर्डर कोऑपरेशन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में भारत के अलावा नेपाल से भी कई ऐसे एक्सपर्ट शामिल हुए.

Updated on: 29 Jul 2022, 04:18 PM

गोरखपुर:

International Tiger Day 2022 : गोरखपुर में शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर ट्रांसबॉर्डर कोऑपरेशन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में भारत के अलावा नेपाल से भी कई ऐसे एक्सपर्ट शामिल हुए, जिन्होंने बाघों के संरक्षण और सम्वर्द्धन पर काम किया है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित इस वर्कशॉप में पिछले 12 सालों में भारत में बाघों की संख्या बढ़ने पर खुशी तो जाहिर की गई, लेकिन जिस तरह से इंसानों और बाघों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है. बाघों के अंगों की तस्करी बढ़ी है और बाघों की असमय एवं संदिग्ध मृत्यु हो रही है, इन चुनौतियों को खत्म करने पर भी जोर दिया गया.

बाघों के संरक्षण के लिए पिछले एक दशक में जो प्रयास भारत में हुए वो अब रंग लाने लगे हैं. भारत के इस राष्ट्रीय पशु की संख्या को बढ़ाने के लिए आम लोगों को साथ लेकर शुरू किए गए सेव टाइगर प्रोजेक्ट ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया है. आज दुनिया के 70 फीसदी बाघ भारत में हैं और इसी बाघ को बचाने और बढ़ाने के लिए 12 साल पहले शुरू हुए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस कार्यक्रम को यूपी के गोरखपुर में मनाया गया. इस कार्यक्रम में भारत और नेपाल में बाघों के संरक्षण में लगे एक्सपर्ट एक साथ आए और दोनों देशों के बाघों की संख्या बढ़ाने पर अपनी बातें रखीं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी इस कार्यक्रम में वर्चुअल जुड़कर कहा कि वेदों और ग्रंथों की चर्चाओं में भी बाघ का वर्णन मिलता है. 1973 में इसे राष्ट्रीय पशु घोषित करते हुए सेव टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया गया. रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 2010 में अंतरराष्ट्रीय टाइगर-डे की शुरुआत के बाद विश्व में बाघों की संख्या बढ़ाने और दोगुना करने का लक्ष्य लिया गया, जिसे मोदी के नेतृत्व में भारत ने समय से पूर्व 2018 में ही इस लक्ष्य को पा लिया. राज्य स्तर पर यूपी में बाघों की संख्या 2006 में 106 थी 2018 में 173 हो गई. 

सीएम योगी ने कहा कि बहुत जल्द रानीपुर टाइगर रिजर्व भी अस्तित्व में आने जा रहा है. सीएम ने कहा कि गोरखपुर के प्राणी उद्यान में एक सफेद बाघिन आई है और दूसरा सफेद बाघ जल्द आने वाला है. इससे गोरखपुर वासियों को इसके संरक्षण का मौका मिलेगा.

साल 2010 में रूस में भारत और दुनिया के 12 अन्य देशों ने बाघों के संरक्षण को लेकर एक समझौता किया था, जिसमें साल 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. 2010 में भारत में बाघों की संख्या करीब 1,706 थी जो 2018 में 2,967 हो गई. 2022 के अधिकृत आंकड़े अभी नहीं आए हैं, लेकिन वन्य प्रेमियों का मानना है कि भारत में बाघों की संख्या 3500 का आंकड़ा पार कर चुकी है. यह सब कुछ मोदी और योगी सरकार के उन प्रयासों की वजह से हुआ है जो बाघों के संरक्षण को लेकर पिछले कुछ सालों में किए गए हैं.

दुनिया में बाघों के संरक्षण के मामले में भारत पहले स्थान पर है. विश्व के 70 प्रतिशत बाघ भारत में रहते हैं. ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन रिपोर्ट-2018 के अनुसार बाघों की संख्या इस प्रकार है-  

भारत - 2,967
रूस - 433
इंडोनेशिया - 371
मलेशिया - 250
नेपाल - 198
थाईलैंड - 189
बांग्लादेश - 106
भूटान - 103
म्यांमार - 85
शेष दुनिया - 14

राज्यवार स्थिति  2006  2010   2014   2018

मध्य प्रदेश         300        257    308    526
उत्तराखंड          178        227    340    442
कर्नाटक            290        300    406    524
महाराष्ट्र            103       168     190    312

हालांकि, बाघों की संख्या जरूर बढ़ रही है, लेकिन बाघों की मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने मानसून सत्र के दौरान 26 जुलाई, 2022 को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जानकारी दी कि भारत में पिछले तीन साल में शिकार, प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारणों से 329 बाघों की मौत हुई है. इस जानकारी में साफ किया गया है कि 2019 में 96, 2020 में 106 और 2021 में 127 बाघ मारे गए. साल 2021 में प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक मरने वाले बाघों में से 60 बाघ, संरक्षित क्षेत्रों के बाहर शिकारियों, दुर्घटनाओं और मानव-पशु संघर्ष के शिकार हुए. विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों और इंसानों के बीच संघर्ष का अंत फिलहाल उनको नहीं दिख रहा है जो सबके बड़ी चुनौती है.

तमाम उपायों के बावजूद बाघों के शिकार पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है इसपर एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत में शिकार किए गए बाघ के अंगों को तिब्बत व नेपाल के रास्ते चीन तक पहुंचाया जाता है. यह बात कई बार गिरफ्तार किए गए शिकारी कुबूल कर चुके हैं. चीन इसके लिए शिकारियों को मोटी रकम देता है. इस प्रवृत्ति की वजह से बाघों के सिर पर मौत मंडराती रहती है. बाघ संरक्षण पर काम करने वालों का मानना है कि चीन में इससे पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं. जब तक चीन में इस मांग पर अंकुश नहीं लगता तब तक बाघों के शिकार पर रोक लग पाना मुश्किल है.

इस कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ ने जहां यूपी में जल्द एक और टाइगर रिजर्व की सौगात देने की बात कही तो वहीं गोरखपुर चिड़ियाघर में भी अब बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयास तेज हो गए हैं. माना जा रहा है कि इस वर्कशॉप में आए एक्सपर्ट्स के नए आइडिया पर अगर काम हो तो बाघों की संख्या तो बढ़ेगी ही साथ ही इंसानों और बाघों के संघर्ष के मामले और बाघों की मौतें भी कम हो सकेंगी.