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Indian Navy Day 2019 : भारत का एक हमला और हफ्ते भर तक जलता रहा कराची

हर साल 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस (Indian Navy Day) मनाया जाता है. इस देन देश की समुद्री सीमा की रक्षा करने वाले नौसैनिकों को याद किया जाता है. इसी दिन 1971 में भारत-पाक युद्ध (India Pak war 1971) के दौरान पाकिस्तान (Pakistan) के कराची बंदरगाह (K

Updated on: 04 Dec 2019, 01:25 PM

लखनऊ:

हर साल 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस (Indian Navy Day) मनाया जाता है. इस देन देश की समुद्री सीमा की रक्षा करने वाले नौसैनिकों को याद किया जाता है. इसी दिन 1971 में भारत-पाक युद्ध (India Pak war 1971) के दौरान पाकिस्तान (Pakistan) के कराची बंदरगाह (Karachi Port) को भारतीय नौसेना (Indian Navy) ने बर्बाद कर दिया था. इसमें पाकिस्तान के करीब 500 सिपाही भी मारे गए. वहीं भारतीय नौसेना को एक भी नुकसान नहीं हुआ. भारत ने इस हमले को ऑपरेशन ट्राइडेंट (Operation Trident 1971) नाम दिया था. आइए जानते हैं ऑपरेशन ट्राइडेंट (Operation Trident) के बारे में.

कराची पर हमले का आदेश 1 दिसंबर 1971 को एक सील्ड लिफाफे में दी गई. भारतीय नौसेना का पूरा वेस्टर्न फ्लीट दो दिसंबर को मुंबई से कूच कर गया. यह सख्त आदेश था कि युद्ध शुरु होने के बाद ही लिफाफे को खोला जाए. योजना के मुताबिक दिन में नौसेना का बेड़ा कराची से 250 किलोमीटर के वृत्त पर रहेगा और शाम होते-होते उसके 150 किलोमीटर तक पहुंच जाएगा. अंधेरे में हमला करने के बाद पौ फटने से पहले हाई स्पीड से वापस लौटकर 150 किलोमीटर दूर आ जाना है.

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ताकि पाकिस्तानी बमवर्षकों की पहुंच से बाहर आ जाए. हमला रूस की ओसा क्लास मिसाइल बोट से किया जाएगा. नाइलॉन की रस्सियों से खींच कर बोट को ले जाया जाएगा. ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत पहला हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स ने किया. प्रत्येक मिसाइल बोट चार-चार मिसाइलों से लैस थी. स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव निपट पर मौजूद थे. बाण की शक्ल बनाते हुए निपट सबसे आगे था उसके पीछे निर्घट और दाहिनी और वीर मिसाइल बोट्स थे. उसके पीछे आईएनएस किल्टन चल रहा था.

कराची से 40 किलोमीटर पहले यादव ने अपने रडार पर कुछ हरकत महसूस की. उन्होंने देखा कि एक पाकिस्तानी युद्धपोत उनकी तरफ आ रहा है. उस समय रात के 10 बज कर 40 मिनट हुए थे. तभी यादव ने आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदले और पाकिस्तानी जहाज पर हमला करे.

निर्घट ने 20 किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस खैबर पर मिसाइल चलाई. खैबर के नाविकों को लगा कि उनकी तरफ आ रही मिसाइल एक युद्धक विमान है. उन्होंने विमान भेदी तोप से मिसाइल पर निशाना लगाया लेकिन वह खुद निशाना बन गया.

तभी कमांडर यादव ने 17 किलोमीटर की दूरी से खैबर पर एक और मिसाइल दागने का आदेश दिया और किल्टन से कहा कि वह निर्घट के बगल में जाए. दूसरी मिसाइल लगते ही खैबर वहीं रुक गया. पोत में आग लग गई और उससे धुंआ निकलने लगा. कुछ देर बाद खैबर पानी में डूब गया.

निपट ने इसी बीच वीनस चैलेंजर और शाहजहां पर मिसाइल दागी. वीनस चैलेंजर तुरंत डूब गया. जबकि शाहजहां को काफी नुकसान हुआ. तीसरी मिसाइल ने कीमारी के तेल टैंकर्स को निशाना बनाया. जिससे दो टैंकरों में आग लग गई. इसी बीच वीर ने पीएनएस मुहाफिज जो कि एक माइन स्वीपर जहाज था उस पर बम दागे. इसकी वजह से उसमें बहुत तेजी से आग लगी और वह डूब गया. यह हमला होते ही पाकिस्तानी नौसेना ने कराची के चारों ओर छोटे विमानों से निगरानी शुरु कर दी.

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इसी के चलते पाकिस्तानी वायु सेना ने अपने पीएनएस जुल्फिकार को भारतीय युद्धपोत समझ कर उस पर बमबारी कर दी थी. छह दिसंबर को नौसेना मुख्यालय ने पाकिस्ती संदेश पकड़ा. आठ दिसंबर 1971 को एक और हमले की योजना बनाई गई. रात आठ बजकर 45 मिनट का समय था.

आईएनएस विनाश पर कमांडिंग ऑफिसर विजय जेरथ के नेतृत्व में 30 भारतीय नौसैनिक पाकिस्तान पर एक और हमला करने की तैयारी में थे. तभी उनके बोट की बिजली फेल हो गई. कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चला गया. क्योंकि रडार काम नहीं कर रहा था इसके कारण उन्होंने कोई मिसाइल नहीं दागी. लेकिन करीब 11 बजे बोट की बिजली फिर से आ गई.

रडार चला तो पता चला कि एक पोत धीरे-धीरे कराची बंदरगाह से निकल रहा था. वह पोत की पोजीशन देख ही रहे थे कि उनकी नजर कीमारी तेल डिपो की तरफ गई. उन्होंने मिसाइल से उस पर फायर किया. जैसे ही मिसाइल ने उस पर हमला किया तो एक भयंकर धमाका हुआ.

दूसरी मिसाइल से पोतों के एक समूह को निशाना बनाया गया. जिसके कारण वहां खड़े एक ब्रिटिश जहाज हरमटौन में आग लग गई और पनामा का पोत गल्फ स्टार डूब गया. बताया जाता है कि कीमरी तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर दूर से देखा जा सकता है. कराची तेल डिपो में लगी आग सात दिनों तक जलती रही.

कराची पर अगले दिन बमबारी करने गए विमानों ने रिपोर्ट दी कि यह एशिया का सबसे बड़ा बोनफायर था. धुंआ इतना था कि वहां तीन दिनों तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंची.