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जमीन अधिगृहण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, पढ़े पूरी खबर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी भी भूस्वामी की अधिगृहीत की गई जमीन पर अगर कब्जा ले लिया गया है तो वो किसी भी हालत में चाहे उसका उपयोग ना भी किया गया हो भूस्वामी वापस मांगने का हकदार नहीं है.

Updated on: 30 Jun 2021, 06:24 PM

इलाहाबाद:

उत्तर प्रदेश में जमीन अधिग्रहण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी भी भूस्वामी की अधिगृहीत की गई जमीन पर अगर कब्जा ले लिया गया है तो वो किसी भी हालत में चाहे उसका उपयोग ना भी किया गया हो भूस्वामी वापस मांगने का हकदार नहीं है. उच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि कहा कि सरकार चाहे तो अधिगृहीत जमीन का अधिग्रहण रद्द कर सकती है. इस कार्यवाही में जिलाधिकारी किसान को हुए नुकसान की भरपाई करेंगे.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी के साथ वर्षो पहले अधिगृहीत जमीन की खेती के लिए वापस करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में ये भी बताया कि याची अपनी याचिका में इस बात की मांग नहीं कर सकता है कि कुछ लोगों की जमीन वापस की गई है. इसी तर्ज पर उसकी भी जमीन वापस की जाये. उच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद-14 के अंतर्गत समानता का अधिकार में गलत व अवैध लाभ पाने का अधिकार शामिल नहीं है.

आपको बता दें कि यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने विजय पाल व 4 अन्य की याचिका पर दिया है. गौरतलब है कि याचिकाकर्ता गौतमबुद्ध नगर की दादरी तहसील के थापखेरा गांव का निवासी है. उसकी जमीन का कई दशक पहले सरकार ने अधिग्रहण किया था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याची की आपत्ति अस्वीकार कर दी है. याची ने बताया हाई कोर्ट में बताया कि वह जाटव (दलित) बिरादरी का एक किसान है. उसके पास बस यही जमीन है जिससे वो अपनी आजीविका चलाता है.

याचिकाकर्ता ने बताया कि इस जमीन के अलावा उसके पास कोई दूसरी जमीन नहीं है जिससे वो अपनी आजीविका चला सके. उसने अदालत में ये भी बताया कि उसी समय अधिग्रहित की गई कई और लोगों की जमीनें उनको वापस भी कर दी गईं हैं. याची ने उच्च न्यायालय से मांग की कि उसी तर्ज पर उसकी जमीन भी उसे वापस की जाये. याचिका कर्ता की इस मांग पर उच्च न्यायायल ने कहा कि, देरी से मांग के आधार पर ही याचिका खारिज होने योग्य है और किसी को गलत आदेश से जमीन वापस की गयी है तो उस गलती का लाभ नही मांगा जा सकता. अधिगृहीत जमीन पर कब्जा लेने के बाद उसकी वापसी नहीं की जा सकती. उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद इस याचिका को एक सिरे से खारिज कर दिया.