मंदिरों पर चढ़े फूलों से बन रहा हर्बल रंग-गुलाल, इकोफ्रैन्डली होगी होली

मिशन के निदेशक योगेश कुमार ने बताया कि मंदिरों में चढ़े पुष्पों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार कराया जा रहा है. जिससे लोगों को प्रदूषण से बचाया जाए और वातावरण भी शुद्ध रहे. इसके लिए महिलाओं को ट्रेनिंग दी गयी है.

author-image
Ravindra Singh
New Update
herbal colour

हर्बल कलर( Photo Credit : आईएएनएस)

अब मंदिरों पर चढ़े पुष्पों से हर्बल गुलाल तैयार हो रहा है. यूपी में इस वर्ष होली इकोफ्रेन्डली मनाने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए काशी विश्वनाथ मंदिर और माता विन्ध्यवासिनी समेत कई मंदिरों में चढ़े फूलों से बने हर्बल गुलाल माताओं और बहनों के माथे पर लगेंगे. होली के दिन भारत का हर पुरूष भगवान शंकर बाला दुर्गा का प्रतिरूप होगी. इससे महिलाएं अबला नहीं सबला दिखेंगी. इससे महिलाओं रोजगार भी मिल रहा है. उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अर्न्तगत स्वयं सहायता चलाने वाली महिलाओं के कारण यह संभव हो सका है.

Advertisment

32 जिलों में स्वयं सहायता की महिलाएं हर्बल रंग गुलाल तैयार कर रही हैं. लेकिन विशेषकर वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्वनाथ में महादेव एवं बसंती समूह, मिजार्पुर के विन्ध्याचंल में गंगा एवं चांद, खीरी जिले के गोकर्ण नाथ में शिव पूजा प्रेरणा लखनऊ के खाटू श्याम मंदिर तथा श्रावस्ती के देवीपाटन के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं यहां के मंदिरों से चढ़े हुए फूलों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार कर रही हैं.

मिशन के निदेशक योगेश कुमार ने बताया कि मंदिरों में चढ़े पुष्पों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार कराया जा रहा है. जिससे लोगों को प्रदूषण से बचाया जाए और वातावरण भी शुद्ध रहे. इसके लिए महिलाओं को ट्रेनिंग दी गयी है. इस प्रकार के बने गुलाल एक तो हनिकारक नहीं होंगे. दूसरा, इससे बहुत सारी महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा.

मिशन के परियोजना प्रबंधक आचार्य शेखर ने बताया कि प्रत्येक जनपद से 5 से 10 लाख रुपए का लक्ष्य रखा गया है. प्रदेश स्तर पर इसका लक्ष्य एक करोड़ रुपए का रखा गया है. इसे स्थानीय बाजारों के साथ ई-कॉमर्स मार्केट जैसे फ्लिपकार्ट और अमेजन पर इनकी ऑनलाइन बिक्री भी की जाएगी. इसके अलावा महिलाओं के उत्पाद की बिक्री के लिए राज्य के सभी ब्लाकों के प्रमुख बाजारों में मिशन की ओर से जगह मुहैया कराए जाएगी. मिशन का मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिले.

गंगा समूह मिर्जापुर की सचिव सविता देवी ने बताया कि मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे. न ही यह नदी को दूषित करते हैं. मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनको सुखा लिया जाता है. गरम पानी में उबालकर रंग निकाला जाता है. उसके बाद इसमें अरारोट मिलाकर फिर निकले हुए फूल की पंखुड़ियों को पीसकर अरारोट मिलाकर गुलाल तैयार किया जाता है. 50 रुपए की लागत में एक किलो अरारोट तैयार हो रहा है. इसे बाजार और स्टॉलों की माध्यम से 140-150 रुपए में बड़े आराम से बेचा जा रहा है. इसमें ढेर सारी महिलाओं को रोजगार मिला है.

बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ चर्म रोग विशेषज्ञ एमएच उस्मानी कहते हैं कि रासायनिक रंगों का प्रयोग मानव शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है. रंग में मिले कैमिकल्स से त्वचा कैंसर तक हो सकता है. इसके केमिकल स्किन को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. कॉपर सल्फेट रहने से नेत्र रोग एलर्जी भी कर सकता है. होली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होना चाहिए ताकि स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण की भी रक्षा हो सके.

Source : IANS

आईपीएल-2021 eco friendly holi इकोफ्रैंडली होली temple होली colore made by flower Holi 2021 Herbal Color हरबल कलर
      
Advertisment