Holi 2025: करीब 5 हजार साल पुराना है होली का इतिहास, इस जगह आज भी मौजूद हैं होल‍िका दहन के साक्ष्‍य

हरदोई से शुरू हुआ है होली का त्यौहार, यही जली थी होलिका.करीब 5 हजार साल पुराना है होलिका का इतिहास ज‍िसके खंडहर आज भी हैं मौजूद. हरदोई का प्रह्लाद घाट कुंड आज भी मौजूद है जहां जली थी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका.

हरदोई से शुरू हुआ है होली का त्यौहार, यही जली थी होलिका.करीब 5 हजार साल पुराना है होलिका का इतिहास ज‍िसके खंडहर आज भी हैं मौजूद. हरदोई का प्रह्लाद घाट कुंड आज भी मौजूद है जहां जली थी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका.

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Shyam Sundar Goyal
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करीब 5 हजार साल पुराना है होली का इतिहास, इस जगह आज भी मौजूद हैं होल‍िका दहन के साक्ष्‍य Photograph: (news nation )

Holi 2025: होली का त्‍यौहार आने वाले है और रंगों में सरोबार होने के ल‍िए बस कुछ ही समय बचा है. होली की त्‍यौहार ज‍िस परंपरा के कारण मनाया जाता है, उस परंपरा के साक्ष्‍य उत्‍तर प्रदेश के हरदोई में आज भी मौजूद हैं. होली की शुरुआत करीब 5 हजार साल पहले हरदोई से हुई थी. हिरण्यकश्यप की राजधानी जिसे हरिद्रोही कहा जाता था जो आज हरदोई के नाम से जानी जाती है. यहीं होलिका जली थी जिसके बाद उसकी राख से  प्रहलाद  ने होली खेली थी, तभी से होली की शुरुआत हुई है.

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होली की शुरुआत इसी शहर से हुई थी और यहां करीब 5000 साल से भी पुराना नृसिंह भगवान मंदिर, प्रहलाद घाट, हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर आज भी इसकी गवाही दे रहे हैं. पुराणों में वर्णन है कि हिरण्यकश्यप भगवान को अपना शत्रु मानता था, द्रोही मानता था. इसीलिए हरदोई जिले का पुराना नाम हरिद्रोही था क्योंकि यह हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. 

प्रहलाद पर प‍िता ने क‍िए थे जुल्‍म 

पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद  के खिलाफ कई जुल्म किए थे और बदला लेने के लिए उसने कई साज‍िशें रचीं थीं. हिरण्यकश्यप के बेटे प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया, जो उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं आता था. हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की लेकिन भगवान की कृपा से वह हर बार बच जाता था.

होल‍िका ने क‍िया था प्रहलाद को जलाने का प्रयास 

जब उसके सभी उपाय फेल हो गए तो एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा क्योंकि होलिका को भगवान से यह वरदान प्राप्त था कि जब वह आग में बैठती थी, तो वह जलती नहीं थी. इसलिए होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ गई लेकिन भगवान विष्णु की माया के अनुसार, होलिका जलकर भस्म हो गई जबकि प्रहलाद बच गए. उसी समय हरदोई के लोग इस घटना के बाद बहुत खुश हुए और उस जली हुई चिता की राख को उड़ाया और एक-दूसरे को लगाकर खुशी मनाई. तभी से होली का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई.

हरदोई में 'र' अक्षर के उच्चारण पर भी लगी है रोक

हरदोई में भगवान ने एक बार बावन अवतार भी लिया था. हिरण्यकश्यप ने हरदोई में र अक्षर के उच्चारण पर भी रोक लगा दी थी. हिरण्यकश्यप के र शब्द के उच्चारण पर रोक लगाने का प्रभाव आज भी यहां के लोगों की जुबान पर साफ देखने को मिलता है. यहां के बुजुर्ग आज भी हरदोई को हद्दोई, मिर्चा को मिच्चा जैसे शब्दों से उच्चारित करते हैं. यानी अनुवांशिक तरीके से कई स्थानों पर र शब्द बोलचाल की भाषा मे निकलता ही नहीं है. हरदोई में आज भी हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रहलाद घाट मौजूद हैं जो इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं. 

धार्मिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भी है इस बात का उल्‍लेख 

होली की शुरुआत हरदोई से होने की बात धार्मिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भी उल्लेखित है. हालांकि नगर पालिका की उपेक्षा के कारण  प्रहलाद घाट कुंड दुर्दशा का आज शिकार भी है जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है और प्रशासन की कृपा दृष्टि का इंतजार कर रहा है .इसी कुंड से सटा हुआ श्रवण देवी मंदिर शक्ति पीठ है जो कि पौराणिक मन्दिर है. मान्यता है यहां देवी सती का कान गिरा था.

 

 

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