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High Court ने नौ साल बाद पिता को बेटे की कस्टडी सौंपी

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने फैसला सुनाया कि माता और पिता एक बच्चे के अभिभावक होते हैं. इतना कहने के बाद नौ साल के बच्चे की कस्टडी कोर्ट ने उसके कि वे बच्चे विनायक त्रिपाठी की कस्टडी 20 अक्टूबर को कुशीनगर जिले में उनके आवास पर उनके पिता दीपक कुमार त्रिपाठी को सौंप दें.ता को सौंपने का आदेश दिया है. अपनी मां की मृत्यु के बाद जब वह चार महीने का था तब से वह बालक अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था. न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने दादा-दादी को आदेश दिया कि वे बच्चे विनायक त्रिपाठी की कस्टडी 20 अक्टूबर को कुशीनगर जिले में उनके आवास पर उनके पिता दीपक कुमार त्रिपाठी को सौंप दें.

Updated on: 17 Oct 2022, 10:45 AM

लखनऊ:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने फैसला सुनाया कि माता और पिता एक बच्चे के अभिभावक होते हैं. इतना कहने के बाद नौ साल के बच्चे की कस्टडी कोर्ट ने उसके पिता को सौंपने का आदेश दिया है. अपनी मां की मृत्यु के बाद जब वह चार महीने का था तब से वह बालक अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था. न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने दादा-दादी को आदेश दिया कि वे बच्चे विनायक त्रिपाठी की कस्टडी 20 अक्टूबर को कुशीनगर जिले में उनके आवास पर उनके पिता दीपक कुमार त्रिपाठी को सौंप दें.

कोर्ट ने कहा कि माता-पिता बच्चों के अभिभावक होते हैं और उनकी जगह कोई नहीं ले सकता.

अदालत ने यह भी आदेश दिया कि नाना-नानी अगले चार महीने तक हर रविवार सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच अपने पिता के आवास पर बच्चे से मिल सकते हैं.

विनायक त्रिपाठी का जन्म 31 अक्टूबर 2013 को हुआ था. एक दुर्घटना में उनकी मां झुलस गई थी. उसका कई महीनों तक अस्पताल में इलाज चला लेकिन बाद में उसने दम तोड़ दिया.

दीपक त्रिपाठी ने अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाया और पूरे इलाज के दौरान अपनी पत्नी का साथ दिया.

दीपक ने ससुराल पक्ष की रजामंदी से 4 मार्च 2015 को एक विधवा से शादी की. दूसरी पत्नी से उसके दो बच्चे हैं.

इस दौरान दीपक ने अपने बेटे को वापस पाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

अंतिम उपाय के रूप में, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का दरवाजा खटखटाया.

अदालत ने कहा कि नाना-नानी बूढ़े थे और उनके लिए एक नाबालिग बच्चे की देखभाल करना बहुत मुश्किल होगा. याचिकाकर्ता, पिता बच्चे के असली अभिभावक है और परिवार की सहायता से बच्चे की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकता है.

यह भी देखा गया कि याचिकाकर्ता (पिता) बच्चे की देखभाल करने के लिए आर्थिक रूप से भी बेहतर स्थिति में था क्योंकि वह एक प्रतिष्ठित शिक्षक था और एक अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा था.

अदालत ने आगे कहा कि समाज में याचिकाकर्ता का आचरण और व्यवहार भी अच्छा था और इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं था कि उसे अपने बच्चे की कस्टडी न मिले.