ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अगली सुनवाई 17 मार्च को होगी

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित एक मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश पर बुधवार को रोक लगा दी और इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 मार्च तय की.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित एक मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश पर बुधवार को रोक लगा दी और इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 मार्च तय की.

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Yogendra Mishra
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Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट।( Photo Credit : फाइल फोटो।)

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित एक मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश पर बुधवार को रोक लगा दी और इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 मार्च तय की. चार फरवरी को निचली अदालत ने कहा था कि चूंकि इस विवाद से जुड़ी रिट याचिका में जो कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है, पिछले छह महीने में कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया, इसलिए एशियन रीसरफेसिंग आफ रोड एजेंसीज मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के मुताबिक यह स्थगनादेश हटा लिया गया माना जाता है और वह इस मामले की सुनवाई दोबारा शुरू कर सकती है.

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न्यायमूर्ति अजय भनोट ने वाराणसी के अंजुमन इंतजामिया मस्जिद द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता की दलील थी कि उसने पूर्व में इस विवाद से जुड़ी एक याचिका दायर की थी और अदालत ने इस मामले में स्थगनादेश जारी करते हुए निचली अदालत को इस मामले की आगे सुनवाई नहीं करने का निर्देश दिया था. हालांकि, निचली अदालत ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का गलत मतलब निकाल लिया.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी. निचली अदालत के समक्ष यह आपत्ति उठाते हुए एक आवेदन किया गया था कि दीवानी अदालत द्वारा मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुनवाई नहीं की जा सकती. निचली अदालत ने इस आवेदन को खारिज कर दिया था.

निचली अदालत में लंबित मूल मामले में मंदिर ट्रस्ट, स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ मूर्ति भी एक पक्ष है और उसकी दलील है कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य द्वारा करीब 2050 साल पहले कराया गया था. मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1664 में मंदिर ध्वस्त करके उसके मलबे का इस्तेमाल उस जमीन के एक हिस्से पर मस्जिद बनाने में किया. ट्रस्ट ने निचली अदालत से मंदिर की जमीन पर से मस्जिद हटाने और भूमि का कब्जा मंदिर ट्रस्ट को दिए जाने का निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था.

Source : Bhasha

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