राजनेताओं के निर्देश पर प्रधानाचार्य की नियुक्ति अनुमोदन निरस्त करना सही नहीं : HC
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि राज्य के जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी अधिकारियों को अवैध आदेश पारित करने के लिए मजबूर करना खेदजनक स्थिति है l
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि राज्य के जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी अधिकारियों को अवैध आदेश पारित करने के लिए मजबूर करना खेदजनक स्थिति है l कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी भी बिना किसी आपत्ति के जनप्रतिनिधियों के गलत आदेशों का पालन करते हैं। यह तल्ख टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ में जनपद बस्ती के मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत बदरुल उलूम में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहे बशरत उल्लाह की याचिका को स्वीकार करते हुए की है । कोर्ट ने याची की प्रधानाचार्य पद पर बहाल कर नियमित वेतन सहित 6 हफ्ते में बकाया वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया है।और कहा है कि यदि भुगतान में देरी की गई तो नौ फीसदी ब्याज देना होगा तथा सरकार ब्याज राशि की भरपाई जवाबदेह अधिकारी से वसूलने को स्वतंत्र होगी।
याचिका में बताया गया कि याची को वर्ष 2019 में मदरसे में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया गया था । उसने नियुक्ति से पहले गोंडा के दारुल उलूम अहले सुन्नत मदरसे में सहायक अध्यापक के रूप में 5 वर्ष अध्यापन कार्य किया था । जिसके अनुभव के आधार पर उसे प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति दी गई थी । 2020 में की गई एक शिकायत के आधार पर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी द्वारा उसके अनुभव प्रमाण पत्र की जांच भी की गई थी, जिसमें उसे क्लीन चिट दे दी गई थी । किंतु उसके बाद तत्कालीन विधायक संजय प्रताप जायसवाल एवं तत्कालीन श्रम एवं रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के आधार पर शासन के विशेष सचिव ने उसके अनुमोदन को रद्द कर दिया था ।
याची के अधिवक्ता ने कहा कि अनुमोदन रद्द करने से पूर्व याची को पक्ष रखने का अवसर भी नहीं दिया गया था । वहीं राज्य द्वारा दाखिल प्रति शपथ पत्र में कहा गया कि विधायक संजय प्रताप जायसवाल एवं मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के पत्र के बाद हज समिति के सचिव ने याची की नियुक्ति की जांच की थी । एक पक्षीय जांच में याची की नियुक्ति अवैध पाई गई थी , जिसके बाद ही उसके अनुमोदन को रद्द किया गया है । राज्य ने कहा कि याची को जांच के दौरान पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया गया था ।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि विशेष सचिव ने विधायक एवं मंत्री के पत्र के बाद ही प्रकरण का संज्ञान लिया था । एवं हज समिति के सचिव की एकपक्षीय जांच के आधार पर याची की नियुक्ति के अनुमोदन को रद्द कर दिया गया है । विशेष सचिव द्वारा पारित आदेश को राज्य सरकार को भी नहीं भेजा गया है ।
कोर्ट ने तल्ख अंदाज में कहा कि राज्य के जनप्रतिनिधि सरकारी अधिकारियों को अवैध आदेश पारित करने के लिए मजबूर करते हैं । सरकारी अधिकारी भी बिना किसी आपत्ति नेताओं के अवैध आदेशों का पालन करते हैं । कोर्ट ने कहा कि यह खेदजनक स्थिति है ।
न्यायालय ने विभाग द्वारा जारी याची के अनुमोदन निरस्तीकरण आदेश को रद्द करते हुए उसे बहाल करने का आदेश दिया । कोर्ट ने राज्य सरकार को अगले छह सप्ताह में सेवा समाप्ति अवधि का वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया । न्यायालय ने अगले छह सप्ताह में एरियर भुगतान न होने पर याची को 9 फ़ीसदी ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश दिया है । इसके अलग राज्य सरकार को देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी से ब्याज वसूली की छूट भी दी गई है
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