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Gyanvapi Case Verdict: ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, सभी याचिकाएं की खारिज

Gyanvapi Case Verdict: ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, सभी याचिकाएं की खारिज

Updated on: 19 Dec 2023, 10:45 AM

नई दिल्ली:

Gyanvapi Case Verdict: वाराणसी की ज्ञानवापी और काशी विश्वनाथ की जमीन के स्वामित्व विवाद के मामले में मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. जिसमें मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की सभी याचिकों को खारिज कर दिया. जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने ज्ञानवापी परिसर के मालिकाना हक विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी की ओर से दायर की गई सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि, 'ये मुकदमा देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है. हम ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में मुकदमे का शीघ्र फैसला करने का निर्देश देते हैं.'

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मस्जिद में सर्वे को लेकर कहा कि एक मुकदमे में किए गए एएसआई सर्वेक्षण को अन्य मुकदमों में भी दायर किया जाएगा, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अगर निचली अदालत को लगता है कि किसी हिस्से का सर्वेक्षण जरूरी है तो अदालत एएसआई को सर्वे करने का निर्देश दे सकती है.

मुस्लिम पक्ष ने दायर की थी पांच याचिकाएं

बता दें कि वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के मामले में मुस्लिम पक्ष ने पांच याचिकाएं दायर की थी. जिन्हें 19 दिसंबर को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 1991 के मुकदमे के ट्रायल को भी मंजूरी दे दी. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने वाराणसी की अदालत को इस मुकदमे की सुनवाई को छह महीने में पूरी करने का आदेश दिया है. बता दें कि जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने जिन पांच याचिकाओं पर मंगलवार को फैसला सुनाया उनमें से तीन याचिकाएं 1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किए गए केस से संबंधित है. जबकि दो अन्य याचिकाएं मस्जिद परिसर में एएसआई के सर्वे के आदेश के खिलाफ दायर की गई थीं.

जानें क्या है पूरा मामला?

बता दें कि साल 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में विश्वनाथ ज्ञानवापी केस के मामले में पहला मुकदमा दाखिल किया गया था. इस याचिका में हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी थी. इन याचिकाओं को प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने दायर किया था. याचिका दाखिल करने के कुछ महीने बाद यानी सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया. इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. इस कानून के मुताबिक अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल जेल के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है.