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प्राकृतिक आपदाओं से अलर्ट करेगा ग्लेशियर सेंसर अलार्म, जानें कैसे

प्राकृतिक आपदा को लेकर सतर्कता और चेतावनी की जरूरत हाल ही में उत्तराखण्ड के चमोली में हुए हिमस्लखन की घटना के बाद और बढ़ गई है. इस आपदा में कई सौ लोग लापता हो गए और काफी जान माल का नुकसान भी हुआ.

Updated on: 25 Feb 2021, 04:58 PM

वाराणसी:

प्राकृतिक आपदा को लेकर सतर्कता और चेतावनी की जरूरत हाल ही में उत्तराखण्ड के चमोली में हुए हिमस्लखन की घटना के बाद और बढ़ गई है. इस आपदा में कई सौ लोग लापता हो गए और काफी जान माल का नुकसान भी हुआ. आपदा से पहले जानकारी मिलने पर इसे रोकना संभव हो सकता है, ताकि बचाव और रोकथाम पर काम किया जा सके. इसी को देखते हुए वाराणसी की छात्राओं ने ग्लेशियर फ्लड अलर्ट सेंसर अलार्म का निर्माण किया है, जो प्राकृतिक आपदाओं से पहले ही लोगों को चेतावनी दे देगा. उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित अशोका इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट की छात्राएं अन्नू, आंचल पटेल और संजीवनी यादव ने यह सेंसर आलर्म मिलकर तैयार किया है. अन्नू सिंह ने आईएएनएस को बताया कि उत्तराखण्ड में ग्लेशियर स्लाइड हुआ था, जिसमें कई लोगों की जान गई. उसी को देखते हुए एक ऐसा ग्लेशियर फ्लड अलर्ट सेंसर अलार्म डिवाइस बनाया है, जिससे आपदा का पूवार्नुमान हो जाए. इससे होने वाली दुर्घटना से लोगों को बचाया जा सके. 

उन्होंने बताया कि इस सेंसर आलर्म का ट्रांसमीटर बांध, डैम क्षेत्र या ग्लेशियर के इलाके में लगा होगा. इसका रिसीवर राहत आपदा कन्ट्रोल क्षेत्र में लगाया जा सकता है. जैसे ही कोई आपदा आने वाली होगी वैसे ही ट्रान्समीटर रिसिवर को संकेत भेज देगा, जिससे समय रहते आपदा से लोगों को अलर्ट करके बचाया जा सकता है. इसकी रेंज अभी 500 मीटर है. आने वाले समय में यह कई किलोमीटर तक काम करेगा. 

एक घंटे चार्ज होने पर छह माह तक यह बड़े आराम से काम करेगा. इसे बनाने में 7 से 8 हजार रुपये का खर्च आया है. इसमें हाई फ्रीक्वेंसी ट्रांसमीटर, रिसीवर, साढ़े चार फिट के दो टावर है, जिसमें ट्रांसमीटर लगाया गया है. अभी यह प्रोटोटाइप तैयार किया गया है. टावर को नुकसान पहुंचते ही इसमें लगे ट्रांसमीटर एक्टिव होंगे और आपदा का संकेत मिल जाएगा. बांध, ग्लेसियर, नदी के किनारे लगाने पर यह अच्छा कार्य करेगा.

संजीवनी ने बताया कि वायरलेस फ्लड अलर्ट अलार्म से प्रकृति आपदा जैसे बड़ी-बड़ी नदियों में उफान आने पर हिमस्खलन, ग्लेशियर, के फटने पर पहाड़ों के किनारे बसे शहर गांव और पहाड़ों के बीच बनी सड़कों में यह लगाया जा सकता है. कभी भी नदियों के बांध टूटने पर, ग्लेशियर के फटने पर ये सेंसर 1 सेकेंड के अंदर दुर्घटना क्षेत्रों से दूर के ऐरिया में बसे गांव व शहर के लोगों को अलर्ट कर देता है. जिससे समय रहते नदियों के आस पास बसे लोगों की आसानी से मदद की जा सकेगी. इसके आलर्म के माध्यम से लोगों को दुर्घटना से बचाया जा सकता है. इसे चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत नहीं होती, क्योंकि यह सोलर से चार्ज होता है. 1 घंटे चार्ज होने पर 6 माह धूप के बिना भी यह कार्य कर सकता है.

अशोका इंस्टीट्यूट रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल के इंचार्ज श्याम चौरसिया ने बताया कि प्राकृतिक अपदाओं में पूवार्नुमान के अभाव में लोग तबाही के शिकार होते हैं, लेकिन इस सिस्टम के बन जाने से आपदाओं से लोगों को बचाया जा सकता है. इसके माध्यम से हिमस्खलन, बादल फटने, बाढ़ जैसी आपदाओं से लोगों को बचाया जा सकता है.

क्षेत्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी महादेव पांडेय ने बताया कि आपदा में पूवार्नुमान के आभाव में दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें बहुत सारी जानें जाती हैं. ग्लेशियर सेंसर अलार्म के माध्यम से इस प्रकार की दुर्घटनाएं रोकी जा सकती हैं. इसकी रेंज को बढ़ाकर अगर यह और पहले सूचना देने में सक्षम बनाया जाए तो यह और ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकता है. यह तकनीक अच्छी है.