गांव की पंचायत से राज्य की विधानसभा तक...यूपी में खत्म होने की कगार पर कांग्रेस!
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. सूबे की राजनीति में सियासत के मैदान से कांग्रेस बाहर हो चुकी है.
highlights
- UP में अस्तित्व के लिए कांग्रेस का संघर्ष
- सियासत के मैदान से बाहर हो चुकी है पार्टी
- UP में खत्म होने की कगार पर पहुंची कांग्रेस
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. सूबे की राजनीति में सियासत के मैदान से कांग्रेस बाहर हो चुकी है. कांग्रेस उस राज्य में तेजी से अलग-थलग हो रही है, जो कभी उसका गढ़ माना जाता था. अब हालत यह हो चली है कि राज्य में पार्टी खत्म होने की कगार पर है. गांव की पंचायत से राज्य की विधानसभा और देश की लोकसभा तक...उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होता जा रहा है. बात किसी भी चुनाव की हो, हर चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस संख्याबल के हिसाब से लिस्ट में निचले पायदान पर नजर पड़ती है. ताजा उदाहरण ही देख लें तो अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले के सेमीफाइनल माने जा रहे पंचायत चुनावों में भी कांग्रेस का खेल खत्म हो चुका है.
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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है और शह-मात का खेल शुरू हो चला है. लेकिन उससे पहले के पंचायत चुनाव काफी अहमियत रखते हैं, मगर इन चुनावों में दूर दूर तक कांग्रेस पार्टी का नामो निशान नहीं रहा है. जिला पंचायत सदस्य चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सत्तारूढ़ बीजेपी को पछाड़ा. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने भी अच्छा प्रदर्शन किया. निर्दलीय प्रत्याशी भी बाजी मार गए. मगर कांग्रेस बुरी तरह से पिछड़ गई थी. इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में बीजेपी ने 75 में से 67 सीटों पर कब्जा किया, समाजवादी पार्टी के हिस्से में महज 6 सीटें आईं, जबकि कांग्रेस यहां बिल्कुल साफ रही. एक भी सीट उसने नहीं जीती.
यूपी में आज कांग्रेस का अस्तित्व क्या है, यह इसे जानकर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में कांग्रेस यूपी में अपने सबसे ही मजबूत किले रायबरेली में भी सीट नहीं जीत पाई है. रायबरेली सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र है, मगर जीत फिर भी नहीं मिली है. यूपी में आज ब्लॉक प्रमुख चुनाव हो रहे हैं. अब तक 349 ब्लॉक प्रमुख निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं. बीजेपी के 318 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. समाजवादी पार्टी के 17 प्रत्याशियों ने निर्विरोध जीत दर्ज की है, जबकि 15 ब्लॉक में निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि यहां भी कांग्रेस का नामो निशान नहीं है. हालांकि अभी 825 में से बाकी सीटों के निर्णय आने बाकी हैं.
यूपी से लोकसभा में कांग्रेस की महज एक सीट
पंचायत चुनावों को छोड़ दें तो जो यूपी कांग्रेस का गढ़ होती थी, आज वहां से लोकसभा में महज एक सदस्य है. कहने तो कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, मगर असलियत आज यह है कि कांग्रेस यूपी में अपनी पूरी जमीन खो चुकी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में महज रायबरेली सीट कांग्रेस के खाते में आई, जहां से सोनिया गांधी ने जीत दर्ज की. अपनी सीट जीतकर सोनिया गांधी ने जैसे तैसे कांग्रेस की लाज बचाए रखी. वरना राहुल गांधी और अन्य बड़े धुरंधर बीजेपी की आंधी में उड़ते ही नजर आए. खुद अमेठी में राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा में कांग्रेस का पत्ता साफ होने की बात तो तभी स्पष्ट हो गई, जब 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी थी.
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2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 7 सीटें
बीते तीन दशक से सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले खुद को पुनर्जीवित करने के लिए एक गंभीर प्रयास किया था, जब शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया और राज बब्बर राज्य प्रमुख थे. '27 साल, यूपी बेहाल' के नारे के साथ कांग्रेस ने एक गति पकड़ी और राहुल गांधी एक राजनेता के रूप में उभरने लगे. हालांकि अभियान के बीच में कांग्रेस आलाकमान ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया था. मगर बावजूद इसके कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दोहरे अंक तक भी नहीं पहुंच सकी. पार्टी के खाते में महज 7 सीटें आई थीं, जबकि उसी की सहयोगी सपा 49 सीटें जीतने में कामयाब रही.
यूपी में कांग्रेस की स्थिति
- राज्यसभा सदस्य (वर्तमान)- 1
- लोकसभा सदस्य (2019 चुनाव)- 1
- विधानसभा सदस्य (2017 चुनाव)- 7
- जिला पंचायत सदस्य (वर्तमान)- 0
कांग्रेस की खिसकती जमीन से पार्टी में टूट
कांग्रेस की जमीन जैसे-जैसे सिमट रही है, उसके अपने नेता दामन छोड़ बीजेपी की ओर जा रहे हैं. जितिन प्रसाद इसका ताजा उदाहरण हैं. पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने बीजेपी के हाथों कई वरिष्ठ नेताओं को खोया है. यूपीसीसी की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले दक्षिणपंथी बनने वालों में सबसे पहली नेता थीं. कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह ने 2018 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए और बाद में उनके भाई राकेश सिंह भी बीजेपी में आ गए. 2019 में पूर्व सांसद रत्ना सिंह और संजय सिंह बीजेपी में चले गए, उसके बाद पूर्व विधायक अमीता सिंह का स्थान आया. 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक बाद उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. अम्मार रिजवी ने भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. पूर्व विधायक जगदंबिका पाल ने 2014 में बीजेपी को चुना था.
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मिशन 2022 के लिए कांग्रेस की तैयारी
बहरहाल, अब कांग्रेस ने इस बार चुनाव से काफी पहले ही तैयारियां मुकम्मल कर ली हैं. इस बार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पूरी बागडोर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में. यही वजह बीते चुनावों की तुलना में 2022 के होने वाले चुनाव में कांग्रेस हमेशा की तरह पीछे नहीं रहना चाहती है. कहने को तो कांग्रेस की प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए तैयारियां पूरी हैं, मगर अभी भी मामला गठबंधन पर फंसा हुआ है. विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का किसी पार्टी से गठबंधन होगा या नहीं होगा, इसके लिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.
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