मछली मंडी से क्यों जमींदोज कर दी गईं एक ट्रक थाई मांगुर, पढ़ें पूरी खबर
ये मछली सड़ा गला मांस, स्लॉटर हाउस का कचरा खाकर तेजी से बढ़ती है, नदियों के इको सिस्टम के लिए भी खतरा है ये मछली. ये मछली नदियों में मौजूद जलीय जीव जन्तुओं और पौधों को भी खा जाती है और इसका व्यापार भी प्रतिबंधित है.
highlights
- थाई मांगुर में लेड की विषाक्तता मिली
- देशी मांगुर 150 से 200 ग्राम की होती है
- थाई मांगुर पांच किलो तक हो सकती है
- बारिश में धान के खेतों, नदी तालाब में पहुंचती हैं
- जलीय पौधों और देशी मछलियों के लिए बड़ा खतरा
लखनऊ:
लखनऊ के दुबग्गा मछली मंडी में सोमवार को थाई मांगुर से भरा ट्रक पहुंचने से हड़कंप मच गया. मत्यस्य अधिकारियों को जैसे ही इसकी खबर लगी वो तुरंत मौके पर पहुंचे और थाई मांगुर से भरे ट्रक को जब्त कर लिया. बाद में अधिकारियों ने थाई मांगुर से भरे ट्रक को बाहर ले जाकर ट्रक की पूरी मछलियों को एक गड्ढा खोदकर दफना दिया गया. आपको बता दें कि थाई मांगुर भारत में बैन है इसे अफ्रीकन कैट फिश के नाम से भी जानते हैं. इसे खाने से कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं. ये मछली थाईलैंड से बांग्लादेश के रास्ते होते हुए भारत पहुंची है. ये मछली सड़ा गला मांस, स्लॉटर हाउस का कचरा खाकर तेजी से बढ़ती है, नदियों के इको सिस्टम के लिए भी खतरा है ये मछली. ये मछली नदियों में मौजूद जलीय जीव जन्तुओं और पौधों को भी खा जाती है और इसका व्यापार भी प्रतिबंधित है, लेकिन मुनाफे के लिए और अधिकारियों व्यापारियों की मिलीभगत से बाराबंकी में कई फार्म पर इसका उत्पादन किया जा रहा है.
छोटे-बड़े तालाबों से लेकर गंगा, यमुना नदी तक पैठ बना चुकी 'थाई मांगुर' या अफ्रीकन कैट फिश देशी मछलियों व जलीय वनस्पतियों पर भारी पड़ रही है. मिनटों में मरे जानवर, बूचड़खाने का अवशेष चट कर जाने वाली यह विदेशी मछली मत्स्य विकास के समक्ष बड़ी चुनौती साबित हो रही है. सख्त नियमों के अभाव में जहां इसके व्यापार पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है वहीं अधिक धन कमाने के लालच में लोग चोरी-छिपे इसका पालन कर जाने-अनजाने जैव विविधता के लिए गंभीर समस्या खड़ी कर रहे हैं.
राजधानी में रोजाना बिक जाती हैं कई टन थाई मांगुर
देवा के पास अम्हराई गांव में बड़े पैमाने पर इसका पालन किया जा रहा है. राजधानी में हर रोज टनों 'थाई मांगुर' बाजार में बिकने के लिए लाई जाती है. दिल्ली में इसकी सबसे बड़ी मंडी है. थाईलैंड में विकसित की गई मांसाहारी मछली की विशेषता यह है कि विपरीत परिस्थितियों में भी यह तेजी से बढ़ती है. जहां अन्य मछलियां पानी में आक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है. यह पानी में मौजूद छोटी-बड़ी मछलियों व जलीय वनस्पतियों को भी यह खा जाती है.
लेड की अधिकता की वजह से हानिकारक
नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेस (एनबीएफजीआर) के फिश हेल्थ मैनेजमेंट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. एके सिंह बताते हैं कि 1998 में थाईलैंड के वैज्ञानिकों ने मांगुर का स्थानीय किस्म से क्रॉस कराकर इसे विकसित किया था. डॉ. सिंह बताते हैं कि बीते दस वर्ष में इसका उत्पादन दोगुना हो गया है. शोध में इसमें लेड की मौजूदगी का पता चला है. ऐसे में इसका सेवन सेहत के लिए घातक हो सकता है.
थाईलैंड से बांग्लादेश के रास्ते पहुंची भारत
मत्स्य विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. एसके सिंह का कहना है कि थाईलैंड से बांग्लादेश और वहां से भारत पहुंची थाई मांगुर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश लगभग सभी स्थानों पर पाई जाती है. भारत सरकार ने इस पर वर्ष 2000 में प्रतिबंध लगाया था, लेकिन आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा बैन को हटा दिया गया था. इसी कड़ी में यहां राजधानी में भी व्यापारियों ने न्यायालय की शरण ली और उन्हें भी राहत मिल गई. हालांकि केंद्र सरकार के निर्देश पर लोगों को इससे सेहत व जैव विविधता को होने वाले नुकसानों के बाबत जागरूक किया जाता है.
थाई मांगुर से देशी बिलगगरा के अस्तित्व को खतरा
डॉ. सिंह बताते हैं कि समय-समय पर छापे मारे जाते हैं, लेकिन कोई कानून न होने की वजह से सख्त कार्रवाई नहीं की जा पाती है. बस इसे नष्ट कर दिया जाता है. इस बारे में वन्यजीव संरक्षण के लिए काम करने वाले अली हसनैन आब्दी 'फैज' का कहना है कि थाई मांगुर जीवित ही बेची जाती है. तेजी से बढ़ने वाली यह मछली कीचड़ में भी जीवित रह सकती है. नदियों और तालाबों में यह दूसरी प्रजाति की मछलियों का तेजी से भक्षण करती है. यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब स्थानीय कैटफिश (बिलगगरा) का खात्मा हो जाएगा और थाई मांगुर ही बचेगी.
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