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लखीमपुर के खेत में लगी आग।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur kheri) में एक हैरतंगेज करने वाली घटना सामने आई है. भीषण गर्मी (Heat) में यहां के मुड़ा पहाड़ी गांव में दो बीघा जमीन अंदर ही अंदर धधक रही है. आलम यह है कि उस जमीन पर खड़े पेड़-पौधे जलकर खाक हो गए हैं. जमीन के अंदर आग है या कुछ और इसे लेकर भ्रम बना हुआ है. इस घटना को लेकर इलाके में चर्चा का बाजार गर्म है.
मुड़ा पहाड़ी गांव के बगल में स्थित बेला पहाड़िया गांव के किसान सर्दुल ने बताया कि शुक्रवार सुबह जब वह एक खेत पर गए तो उन्हें वहां की मिट्टी में कोयले की तरह जलने का एहसास हुआ. पहले उन्हें लगा कि कहीं यह तेज धूप के कारण तो नहीं है, लेकिन जब वह आगे बढ़े तो वहां की जमीन और अधिक गर्म थी. थोड़ी देर में इस बात की जानकारी गांव के तमाम लोगों को लग गई. गांव वालों का कहना है, "दो बीघा जमीन अंदर ही अंदर तप रही है. जमीन की तपिश इतनी ज्यादा है कि उस पर खड़े पेड़-पौधे भी जलकर खाक हो चुके हैं."
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गांव वालों का कहना है कि जमीन की ऊपरी परत हटाई जाती है तो अंदर से धुंआ निकलता महसूस होता है. मुड़ा पहाड़ी गांव के सामाजिक कार्यकर्ता सरदार गुरजीत सिंह ने बताया, "जमीन के अंदर शोले धधक रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे कोयले की भट्टी जल रही है.
लेकिन आग की लपटें नहीं दिख रही हैं. बस जमीन दरकती चली जा रही है. बड़े-बड़े गड्ढे हो रहे हैं. यह लगातार बढ़ता जा रहा है. पहले कुछ कम क्षेत्रफल में था. लेकिन शाम तक और ज्यादा हो गया है. हम लोगों ने इसकी सूचना पुलिस और प्रशासन को भी दी है, लेकिन अभी तक प्रशासन ने इस घटना का संज्ञान नहीं लिया है."
लेकिन जिला प्रशासन का कहना है कि उस जमीन का सर्वे किया गया है, और इस घटना के कारणों और उससे बचाव के उपायों पर चर्चा चल रही है.
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जिला वन अधिकारी समीर कुमार हानांकि इसे ग्राउंड फायर बताते हैं. उन्होंने कहा, "जमीन में तीन तरह से आग लगती है. पहला पेड़-पौधे की पत्तियां ऊपर-ऊपर जलकर खाक हो जाती हैं, जो प्राय: पेड़-पौधों के ऊपरी हिस्सों के आग के सम्पर्क में आने से होता है.
दूसरा, जमीन पर सूखे पड़े ह्यूमस के किसी ज्वलनशील पदार्थ के सम्पर्क में आने के कारण सतह पर आग लगती है. तीसरा है ग्राउंड फायर. इसमें जमीन के निचले सतह में पड़े ह्यूमस के किसी ज्वलनशील पदार्थ के सम्पर्क में आने से एक निश्चित क्षेत्रफल में नीचे-नीचे ह्यूमस सुलगने लगता है.
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वन विभाग की ट्रेनिंग में इसे पढ़ाया जाता है. हालांकि यह जमीन खाली है. इससे कोई नुकसान नहीं है. नदी भी नजदीक है. जनपद में ऐसा पहली बार हुआ है, इसलिए लोग इसके वैज्ञानिक कारण को समझ नहीं पा रहे हैं."
लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. ध्रुवसेन सिंह के अनुसार, "वहां कोई पानी का क्षेत्र होगा, जो सूख गया है. इसीलिए वहां पर अर्गेनिक पदार्थों के कारण धुंआ उठ रहा है. यह तापमान का भी असर है. अधिकतम तापमान के कारण यह ज्वलनशील बना है.
झाड़ और कचरा के कारण आग लगी है. यह आग प्राकृतिक कारण से नहीं लगी है. किसी ने पहले कहीं चिंगारी फेंकी होगी, जो धीरे-धीरे सुलगता रहा. वहां की सारी चीजें बिल्कुल सूखी हुई होंगी. इस कारण आग बढ़ती चली जा रही है. हालांकि इससे जमीन को कोई नुकसान नहीं है. जमीन बंजर होने जैसी कोई बात नहीं है."
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उन्होंने बताया, "यह कोई प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं है. आज से लगभग 15 साल पहले लखनऊ के कठौता झील पर भी आग लग चुकी है. इसकी जांच हुई थी, जिसमें पुरातत्व कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में भी कार्बनिक पदार्थ में चिंगारी पकड़ने की वजह बताई थी. आग प्राकृतिक रूप से नहीं लग सकती है. अंडमान निकोबार में ज्वालामुखी उद्गार से आग लगती है. इसके अलावा कहीं ज्वालामुखी उद्गार होता ही नहीं है."
तराई नेचर कंजर्वेशन सोसायटी के सचिव डॉ. बी.पी. सिंह के अनुसार, "गर्मी की वजह से जमीन की तपिश बढ़ सकती है. हो सकता है कि जमीन का एक टुकड़ा उस जगह पर हो, जहां पेड़-पौधों की छाया न हो."
HIGHLIGHTS
- जमीन की ऊपरी परत हटाने पर निकलता है धुआं
- जमीन के अंदर शोले धधकते हुए महसूस हो रहे हैं
- भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने कहा मौसम का है असर