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पीएफआई का उत्‍तर प्रदेश में विस्तार, सीएए विरोधी गतिविधियों में निभाई मुख्य भूमिका

चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने उत्तर प्रदेश में अपने आधार का विस्तार किया है और हाल ही में राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में इसने प्रमुख भूमिका निभाई है.

Updated on: 27 Dec 2019, 09:29 AM

नई दिल्‍ली:

चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने उत्तर प्रदेश में अपने आधार का विस्तार किया है और हाल ही में राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में इसने प्रमुख भूमिका निभाई है. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) 2006 में केरल (Kerala) में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में शुरू हुआ था. केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा साझा किए गए नवीनतम खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय (एमएचए) के विचार के अनुसार, राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय रहा.

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रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, मनिथा नीति पासराई, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और अन्य संगठनों के साथ विलय करके एक बहुराज्यीय पहुंच हासिल कर ली है और वह पिछले दो वर्षों से उत्तर प्रदेश में अपना आधार फैला रहा है.

इसमें यह भी कहा गया है कि तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा शुरू किए गए उपायों ने पीएफआई सदस्यों को उत्तर प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर किया था, लेकिन उन्होंने पिछले दो वर्षों में राज्य में पैठ बनानी शुरू कर दी है.

16 दिसंबर को आईएएनएस ने बताया था कि कैसे देशभर में हो रहे सीएए विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई काम कर रही है. 11 दिसंबर को कानून बनने के बाद से हो रहे इन प्रदर्शनों में 19 लोग मारे जा चुके हैं. 1500 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और पांच हजार लोगों को हिरासत में लिया गया है.

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यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह गैर-मुस्लिम समुदायों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है. हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके हैं, उन्हें भारत की नागरिकता देने का प्रावधान इस कानून के अंतर्गत किया गया है.

हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के लिए खतरा है क्योंकि इसमें नागरिकता के लिए धर्म को आधार बनाया गया है.