यहां मॉनसून बच्चों के लिए लाता था मौत की सौगात...बारिश न होने की दुआ मांगते थे लोग
पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को लंबे समय तक भयभीत करने वाली महामारी इंसेफ्लाइटिस पूर्वांचल के मासूमों के लिए मौत का दूसरा नाम थी। चार दशक तक इसकी परिभाषा यही रही लेकिन सिर्फ पांच साल में इसे काबू में कर योगी सरकार ने इस जानलेवा बीमारी का ही दम निकाल
गोरखपुर:
पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को लंबे समय तक भयभीत करने वाली महामारी इंसेफ्लाइटिस पूर्वांचल के मासूमों के लिए मौत का दूसरा नाम थी। चार दशक तक इसकी परिभाषा यही रही लेकिन सिर्फ पांच साल में इसे काबू में कर योगी सरकार ने इस जानलेवा बीमारी का ही दम निकाल दिया है। इंसेफेलाइटिस 2017 से साल दर साल काबू में आती गई है। इसे 95 फीसदी नियंत्रित करने वाली योगी सरकार अब बची खुची बीमारी को भी नियंत्रित करने की तैयारी में जुट गई है और इसके लिए एक बार फिर से दस्तक अभियान का सहारा लिया गया है। देखिए यह विशेष रिपोर्ट....
5 साल पहले जून और जुलाई के महीने में जब पूर्वांचल के आसमान पर बादल छाते थे तो लोग यह कामना करते थे कि यहां पर बारिश ना हो क्योंकि पूर्वांचल में 5 साल पहले होने वाली बरसात अपने साथ मासूमों की मौत की सौगात लेकर आती थी। बरसात के साथ ही इंसेफलाइटिस महामारी का प्रकोप शुरू हो जाता था जो 4 से 5 महीनों में सैकड़ों मासूमों को मौत का शिकार बना देता था और इससे कहीं अधिक बच्चे शारीरिक और मानसिक विकलांग हो जाया करते थे। बीआरडी मेडिकल कॉलेज का 100 नम्बर इंसेफ्लाइटिस वार्ड बच्चों और उनके परिजनों की चीत्कारों से गूंजता रहता था। एक एक बेड भर्ती पर दो से तीन बच्चे एक एक सांस के लिए संघर्ष करते नजर आते थे।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1978 में पहली बार दस्तक देने वाली इस विषाणु जनित बीमारी की चपेट में 2017 तक जहां 50 हजार से अधिक बच्चे असमय काल के गाल में समा चुके थे और करीब इतने ही जीवन भर के लिए शारीरिक व मानसिक विकलांगता के शिकार हो गए। इस महामारी को करीब से देखने, दवा और इलाज के लिये संघर्ष करने और बतौर सांसद लोकसभा में हमेशा आवाज उठाने वाले योगी आदित्यनाथ को पता था कि इस बीमारी की जड़ कहां है और इस पर प्रहार कैसे करना है।
2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद टॉप एजेंडा में शामिल कर इंसेफेलाइटिस उन्मूलन का संकल्पित और समन्वित कार्यक्रम लागू कर योगी आदित्यनाथ ने एक झटके में ही दशकों की महामारी का इलाज कर दिया। पिछले साल और इस साल गोरखपुर जिले में अब तक जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) से एक भी मौत नहीं हुई है। यही नहीं इस साल सामने आए एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 27 मरीजों में से भी सभी सुरक्षित हैं।
इंसेफेलाइटिस को काबू में करने में संचारी रोग नियंत्रण अभियान और दस्तक अभियान के परिणाम बेहद सकारात्मक रहे हैं। यानी जागरूकता के साथ बेहतरीन चिकित्सकीय व्यवस्था देकर जेई से होने वाली मौतों पर शत प्रतिशत नियंत्रण और एईएस से होने वाली मौतों पर भी 95 प्रतिशत तक नियंत्रण पा लिया गया है।
अकेले गोरखपुर जिले की बात करें तो इंसेफेलाइटिस रोगियों के इलाज के लिए यहां 19 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी), तीन मिनी पीआईसीयू, एक पीआईसीयू (पीकू) में कुल 92 बेड तथा बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 313 बेड रिजर्व हैं। इसके अलावा पीकू व मिनी पीकू में 26 तथा मेडिकल कॉलेज में 77 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। दस्तक अभियान के तहत सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आशा बहनों और आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों ने निभाई।
घर-घर बीमार बच्चों की जांच से लेकर इलाज और स्वच्छता के प्रति जागरूकता जगाने का इनका प्रयास बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ और लोगों ने अपने बच्चों के बीमार होने के बाद झोलाछाप डॉक्टरों की बजाय सरकारी अस्पतालों की अच्छी व्यवस्था के तहत इलाज कराना मुनासिब समझा। गांव और कस्बे के सीएचसी और पीएचसी पर ही इंसेफेलाइटिस के इलाज की सुविधा उपलब्ध होने की वजह से सरकार ने असंभव माने जाने वाले इस कार्य को लगभग पूरा कर लिया।
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