लॉकडाउन से चरमराई उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था, रेवेन्यू में 80 फीसद की कमी
अप्रैल महीने में सरकार के खाते में आने वाले रेवेन्यू में भारी कमी आई है. 11 हज़ार करोड़ रुपये के रेवेन्यू की जगह 80 फीसद का नुकसान हुआ है.
लखनऊ:
कोरोना से जंग में जूझ रही उत्तर प्रदेश सरकार आर्थिक संकट भी झेल रही है. लॉकडाउन की वजह से राजस्व के सभी प्रमुख स्रोत ठप हैं. हालात यह है कि वित्तीय वर्ष के पहले महीने की कमाई के आंकड़े ने सरकार को जोर का झटका दिया है. लक्ष्य के मुकाबले 20 फीसदी से भी कम कमाई हुई है, जबकि खर्च बेतहाशा बढ़ गए हैं. अप्रैल महीने में सरकार के खाते में आने वाले रेवेन्यू में भारी कमी आई है. 11 हज़ार करोड़ रुपये के रेवेन्यू की जगह 80 फीसद का नुकसान हुआ है. सरकार इससे पहले खर्च कम करने के लिए विधायक निधि सस्पेंड कर चुकी है. विधायकों के वेतन में कटौती की गई है.
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चालू वित्तीय वर्ष के लिए सरकार ने पांच लाख करोड़ से ज्यादा का बजट पेश किया था. उम्मीद थी कि अप्रैल में लगभग 11 हज़ार करोड़ की कमाई होगी, लेकिन कोरोना ने इस पर पानी फेर दिया. वहीं कोरोना से लड़ाई के संसाधनों पर होने वाला खर्च लगातार बढ़ रहा है. स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाओं के अलावा कम्युनिटी किचन समेत अन्य इंतजाम में भारी खर्च हो रहा है, जिसके बारे में कोई पूर्वानुमान ही नहीं था.
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वित्तमंत्री सुरेश खन्ना के मुताबिक हर महीने सरकारी कर्मचारियों को बंटने वाली तनख्वाह करीब चार हजार करोड़ से भी ज्यादा होती है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की माली हालत गड़बड़ नजर आ रही है. बीते फरवरी में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इस बार पांच लाख 12 हजार 860 करोड़ 72 लाख रुपये का बजट पेश किया गया था. इसमें राजकोषीय घाटा 2.97% होने की उम्मीद जताई गई थी, जबकि जीएसटी और वैट से 91568 करोड़ रुपये, आबकारी से 37500 करोड़, स्टांप एवं पंजीयन से 23197 और वाहन कर से 8650 करोड़ रुपये का राजस्व मिलने का लक्ष्य था. इसके अलावा अन्य स्रोतों से भी अच्छी खासी कमाई राज्य के खजाने में जाती है. इसी लक्ष्य के हिसाब से खर्चों का भी लेखा-जोखा तैयार किया गया था.
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मुख्य रूप से आगरा मेट्रो को 286 करोड़, गोरखपुर व अन्य शहरों के मेट्रो परियोजनाओं के लिए 200 करोड़ रुपये, कानपुर मेट्रो को 358 करोड़ रुपये, दिल्ली से मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के लिए 900 करोड़ रुपये और गांवों में जल जीवन मिशन को 3000 करोड़ रुपये की योजनाओं पर काम किया जाना था. मगर हालात ये हैं कि इन दिनों सरकार की कमाई पर कोरोना ने ग्रहण लगा दिया है. वहीं जरूरी खर्चे बदस्तूर जारी हैं.
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वहीं कर्मचारियों के भत्तों पर तो कैंची चल चुकी है, लेकिन वेतन दिए बगैर काम नहीं चल सकता. हालांकि सरकार संकटकाल में वेतन और अन्य जरूरी खर्चे करने से पीछे नहीं हट रही है लेकिन यदि कोरोना संक्रमण इसी रफ्तार से फैलता रहा और लॉकडाउन जारी रहा तो आने वाले समय में निश्चित ही कड़े फैसलों का वक़्त होगा. सुरेश खन्ना के मुताबिक अप्रैल में 10 से 11 हज़ार करोड़ के रेवेन्यु का अनुमान था, लेकिन इसके महज 20 प्रतिशत राजस्व मिलने की संभावना है लेकिन हम कोशिश करेंगे कि सभी राज्य कर्मचारियों का वेतन समय पर मिल जाए. हम केंद्र सरकार से गुजारिश करेंगे कि अगर तीन मई में बाद लॉक डाउन बढ़े तो ग्रीन ज़ोन में छूट दी जाए. जरूरत इस बात की भी है कि हम अलग से संसाधन जुटाए.
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