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कोरोना काल में चाय-कॉफी के बदले बेचने लगा काढ़ा, दुकान पर लगने लगी लंबी लाइन, कमाई सुन उड़ेंगे होश

बनारस में चाय और कॉफी की दुकान सड़क पर, गली में या गंगा घाटों पर नजर आ ही जाते हैं. लेकिन कोरोना के इस संक्रमण काल में एक व्यक्ति ने अपने चाय की दुकान को आयुर्वेदिक काढ़े में बदल दिया है. काढ़े का क्रेज लोगों के सिर चढ़कर कुछ इस तरह से बोल रहा है.

Updated on: 23 Jul 2020, 04:39 PM

वाराणसी:

बनारस में चाय और कॉफी की दुकान सड़क पर, गली में या गंगा घाटों पर नजर आ ही जाते हैं. लेकिन कोरोना के इस संक्रमण काल में एक व्यक्ति ने अपने चाय की दुकान को आयुर्वेदिक काढ़े में बदल दिया है. काढ़े का क्रेज लोगों के सिर चढ़कर कुछ इस तरह से बोल रहा है. जिसका आपको अंदाजा नहीं है. काढ़े के शौकीनों के लिए बाकायदा एक दुकान खुल गई है. जहां न केवल किफायती दर में काढ़ा पीने की व्यवस्था है, बल्कि होम डिलिवरी भी उपलब्ध है. बनारस शहर गलियों, पक्के गंगा घाटों, सीढ़ियों, बनारसी साड़ी और पान के साथ ही यहां लगने वाली चाय की अड़ियों के लिए भी जाना जाता है. लेकिन कोरोना काल में चाय की अड़ियां उजड़ चुकी हैं और बाजार में भीड़ कम होने के चलते चाय के प्रति लोगों की दिलचस्पी काढ़े तक पहुंच गई है. 

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प्रति कप मात्र 10 रुपये में बेचते हैं

लोगों की इसी चाहत को पूरा करने के लिए वाराणसी के जगमबाड़ी इलाके में कभी चाय के दुकानदार विजय ने अब काढ़ा बेचना शुरू कर दिया है. विजय की मानें तो कोरोना काल में वे समाजसेवा के तौर पर खुद ही काढ़ा बनाकर निःशुल्क लोगों को पिलाया करता थे. फिर लोगों की बढ़ती रुचि और चाय की दुकान में मंदी के चलते उन्होंने आयुर्वेदिक काढ़े की दुकान खोल ली. वे 15 जड़ी बूटियों को मिलाकर काढ़ा बनाते हैं और प्रति कप या कुल्हड़ को मात्र 10 रुपये में बेचते हैं. महज 10वीं पास विजय को पूरा यकीन है कि काढ़े के सेवन से लोगों को फायदा पहुंच रहा है. उनकी काढ़े की दुकान दो दिनों में ही इतनी लोकप्रिय हो गई है कि प्रतिदिन 400-500 कुल्हड़ वे काढ़ा बेच लिया करते हैं. वहीं काढ़ा पीने वाले लोग भी इसे एक अच्छी पहल मानते है. उनका कहना है जहां इससे हम कोरोना संक्रमण से दूर रहेंगे वहीं ये काढ़ा हमें स्वस्थ भी रखेगा.