logo-image

सिंगल यूज प्लास्टिक बैन होने से पत्तों के समानों की बढ़ी डिमांड

सिंगल यूज प्लास्टिक के समान बैन होने से एक बार फिर मुसहर समाज के लोगों की उम्मीदें जिंदा हो गई हैं. आज से दो दशक पहले जब प्लास्टिक का इतना जोर नहीं था तब खाने की थाली, कटोरी और दूसरे सामान पत्तों से ही बनाए जाते थे.

Updated on: 24 Jul 2022, 04:52 PM

गोरखपुर:

सिंगल यूज प्लास्टिक के समान बैन होने से एक बार फिर मुसहर समाज के लोगों की उम्मीदें जिंदा हो गई हैं. आज से दो दशक पहले जब प्लास्टिक का इतना जोर नहीं था तब खाने की थाली, कटोरी और दूसरे सामान पत्तों से ही बनाए जाते थे और इसे बनाने का काम मुसहर समाज के लोग करते थे. जंगल के किनारे बसे मुसहर समाज के लोगों की आजीविका का सबसे बड़ा साधन ही पत्तों के बने समान हुआ करते थे. गांव से लेकर शहर तक इन्हीं दोने-पत्तलों की डिमांड खाने-पीने के सामानों को रखकर परोसने में हुआ करती थी और उसकी वजह से हर मुसहर परिवार ठीक-ठाक रुपये कमा लेता था.

मुसहर समाज के लोग आज भी पत्ते का दोना-पत्तल बना कर बेचते हैं, जो इन लोगों का पुश्तैनी धंधा है और परिवार चलाने का मात्र एक साधन भी है लेकिन समय के साथ प्लास्टिक और फाइबर उद्योग ने मुसहर समाज की रोजी-रोटी पर ऐसा हमला किया कि पूरा समाज ही बेरोजगार हो गया. यही नहीं शासन-प्रशासन की भी नजर समाज के इस अंतिम हिस्से तक नहीं पहुंची. 

गोरखपुर के वनसप्ति गांव के मुसहर रामवृक्ष का कहना है कि पहले जंगलों में पलास के पत्ते आसानी से मिल जाते थे. शादी-विवाह के अलावा अन्य मांगलिक कार्यों के लिए भी लोग पहले ही बयाना दे देते थे. जब हम लोग पत्तल देते थे तो हमें उसकी कीमत नकद मिल जाती थी, साथ में पूरे परिवार के लिए मुफ्त भोजन और कपड़ों की भी व्यवस्था हो जाती थी जिससे आसानी से जीविका चल जाती थी लेकिन समय बदलने के साथ जंगल खत्म होते गए और बाजार पर प्लास्टिक और फाइबर उद्योग का कब्जा हो गया. 

अब पलास के पत्तों के अभाव में बरगद व महुआ के पत्तों से किसी तरह दोनिया-पत्तल तैयार भी करते हैं तो उसके लिए ग्राहक ही नहीं मिलते. अब अधिकतर चाट और पान की दुकानों पर ही इनकी पत्तों की डिमांड रहती है. इसके अलावा जंगल से पत्ता लाने के लिए जंगल में तैनात वन विभाग के कर्मचारियों को भी हर महीने पैसा देना पड़ता है जिसकी वजह से इस काम से अब बस किसी तरह से रोटी की व्यवस्था हो पाती है. सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन किए जाने के बाद इस समाज के लोग आज काफी खुश नजर आ रहे हैं और इनका कहना है कि अगर फिर से इनके प्राकृतिक पत्तल और कटोरियों की डिमांड बढ़ी तो इनको एक बड़ा रोजगार मिल जाएगा.

पिछले कुछ दिनों में इनके पास पत्तों के थाली और कटोरी बनाने के ऑर्डर आने शुरू भी हो गए हैं. हालांकि, गोरखपुर और महाराजगंज के मुसहर समाज के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ट्रेनिंग प्रोग्राम की शुरुआत की है, जिसमें स्वयं सहायता समूह बनाकर मुसहर समाज की महिलाओं को मशीनों के जरिए पत्तों से थाली और कटोरी बनाने की ट्रेनिंग दी गई है और जल्द ही इन्हें भी मुख्यधारा से जोड़ने की शुरुआत की जा रही है.