उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के मदरसों को लेकर एक नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब उन्हें अपनी बुनियादी जानकारियां गूगल शीट के माध्यम से ऑनलाइन भरनी होंगी. प्रशासन के मुताबिक़, इस कदम का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और मदरसों की स्थिति का सटीक डेटा एकत्र करना है. लेकिन ज़मीनी हकीकत में यह आदेश कई मदरसा प्रबंधकों और धार्मिक संगठनों के लिए चिंता का विषय बन गया है.
क्या है सरकार की मांग?
नए आदेश के तहत मदरसा संचालकों को एक निर्धारित गूगल शीट में संस्था का नाम, पंजीकरण संख्या, अधीक्षक का नाम, छात्रों की संख्या, भवन की स्थिति, अनुदान की स्थिति और शिक्षकों के विवरण जैसी सूचनाएँ भरनी होंगी. ये जानकारी ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों की निगरानी में संग्रहित की जाएगी.
सरकार की दलील: पारदर्शिता और योजना निर्माण
सरकार का तर्क है कि मदरसों से जुड़ा मौजूदा डेटा या तो अधूरा है या पुराना. इससे योजनाओं के क्रियान्वयन में रुकावटें आती हैं. डिजिटल माध्यम से सटीक जानकारी मिलने से बजट आवंटन, छात्रवृत्ति वितरण और आधारभूत संरचना सुधार में सहूलियत होगी. इसके अलावा अपंजीकृत मदरसों की पहचान भी इस प्रक्रिया से आसान हो सकती है.
मदरसा संगठनों की आशंका
हालांकि, इस आदेश पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं. कई मुस्लिम संगठनों और मदरसा शिक्षकों का कहना है कि सरकार का यह कदम सीधे तौर पर धार्मिक शैक्षणिक संस्थाओं की स्वायत्तता में दखल है. उनका आरोप है कि यह "सर्वेक्षण" के नाम पर निगरानी की रणनीति है, जो अल्पसंख्यक संस्थाओं को मानसिक दबाव में डालने का काम कर सकती है.
कुछ संगठनों ने यह भी चिंता जताई कि तकनीकी रूप से दक्ष न होने के कारण छोटे ग्रामीण मदरसे इस प्रक्रिया में पिछड़ सकते हैं, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं से वंचित होना पड़ सकता है.
तकनीक की राह में चुनौती
गूगल शीट एक डिजिटल टूल है जो तकनीकी जानकारी रखने वालों के लिए सरल हो सकता है, लेकिन एक बड़ी संख्या ऐसे मदरसों की भी है जो डिजिटल संसाधनों से लैस नहीं हैं. इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल साक्षरता और स्थानीय भाषा में तकनीकी सहयोग न मिलना उनके लिए बड़ी बाधा बन सकता है.
एक संतुलन की ज़रूरत
नकारा नहीं जा सकता कि किसी भी संस्थागत ढांचे में पारदर्शिता आवश्यक है. लेकिन इस पारदर्शिता का ढांचा ऐसा होना चाहिए जो संवाद, सहयोग और संवेदनशीलता पर आधारित हो. किसी भी आदेश को लागू करने से पहले उसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव समझना ज़रूरी होता है.
अगर सरकार का उद्देश्य सुधार और सहयोग है, तो उसे मदरसा प्रतिनिधियों से संवाद कर, तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर और डिजिटल ढांचे का मानवीयकरण कर ही आगे बढ़ना चाहिए.
यह आदेश आने वाले दिनों में कैसे लागू होता है और उसका क्या सामाजिक प्रभाव पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा. लेकिन इतना तय है कि डिजिटल युग में पारंपरिक संस्थाओं को समाहित करने के लिए केवल आदेश नहीं, बल्कि एक समावेशी दृष्टिकोण और संवेदनशील नीति की ज़रूरत है.
रिपोर्ट- सैयद उवैस अली