दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम से अपने घरों को जाने के लिए निकले मजदूर (Workers) घर तो नहीं पहुंचे, बल्कि वह एक मॉल में पहुंच गए. दरअसल, ये वो मजदूर हैं, जो दिल्ली NCR के शहरों में रहकर मजदूरी करते थे और अपना पेट पालते थे. लॉकडाउन (Lockdown) के चलते देश में सबसे ज़्यादा प्रताड़ित ये मजदूर ही हैं. इनकी रोजी रोटी भी छीन गई और सिर की छत भी. काफी इंतजार करने के बाद भी जब लॉकडाउन नहीं खुला और इनके खाने पीने के लाले पड़ गए तो ये मजदूर अपने परिवार के साथ इन शहरों को छोड़कर अपने गांव की ओर निकल लिए.
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तमाम सरकारें इनको इनके घरों तक पहुंचाने में विफल साबित हो रही हैं. ऐसे में मजदूर पैदल ही अपने घरों को जाने को विवश हैं. लेकिन सड़कों पर इन मजदूरों के साथ हुए हादसों के बाद सरकार ने साफ कर दिया कि इन मजदूरों को इनके घरों तक पहुंचाने का जिम्मा प्रशासन का है. अब प्रशासन सड़कों पर घूम रहे इन मजदूरों को गाड़ियों में भर-भरकर आश्रय स्थल पर पहुंचा गया है. ऐसा ही एक आश्रयस्थल कौशाम्बी के एंजल मॉल को बनाया गया है, जहां पिछले कई दिनों से मजदूरों को इकट्ठा करके रखा गया है.
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उधर, दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर सैकड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूर मौजूद हैं. वजह यह है कि मजदूर ट्रक में सवार होकर अपने घर जा रहे थे, लेकिन बॉर्डर पर ही चेकिंग के दौरान इन्हें रोक लिया गया. जिसके बाद ट्रक चालक सहित इन सभी को गाजीपुर बॉर्डर के फ्लाईओवर के नीचे पुलिस द्वारा बिठा लिया गया है. इन लोगों का कहना है कि ट्रक चालक को इन्होंने प्रत्येक व्यक्ति 1600 से 2000 किराया दिया है. यह तकरीबन 35 लोग थे, जिन्हें यूपी के बहराइच जाना है, लेकिन अब ना तो इनके पास पैसे हैं और ना ही प्रशासन इनकी कोई सुध ले रहा है. ऐसे में ये करें तो क्या करें. इन लोगों के साथ छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं भी हैं. मजदूरों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि इन लोगों को सही सलामत इनके घर पहुंचाया जाए.
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वहीं दूसरी तरफ औरैया में हुए सड़क हादसे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह स्पष्ट किया था कि कोई भी मजदूर ट्रक साइकिल या फिर पैदल चलता ना दिखाई दे जिला प्रशासन मजदूरों की व्यवस्था करें, लेकिन गाजियाबाद में अभी भी तस्वीरें जस की तस है. सड़कों पर पैदल चलते मजदूर दिखाई दे रहे हैं. गाजियाबाद के मोहन नगर रोड में भी महिलाएं एक साथ अपना सामान लिए पैदल ही चल रही हैं. इनका कहना है इन सभी को यूपी के बस्ती जाना है ये अभी पुरानी दिल्ली सदर से पैदल ही आ रहे हैं.
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