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धोखाधड़ी मामले में कोर्ट दे सकता है अपने विवेकाधिकार से सजा, इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है तो जज को सजा तय करने का विवेकाधिकार है. अपराध के तथ्यों, साक्ष्यों, परिस्थितियों व औचित्य पर विचार कर जज कोई भी सजा दे सकता है. 

Updated on: 02 Dec 2020, 11:33 PM

नई दिल्ली :

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है तो जज को सजा तय करने का विवेकाधिकार है. अपराध के तथ्यों, साक्ष्यों, परिस्थितियों व औचित्य पर विचार कर जज कोई भी सजा दे सकता है. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 420 में दंड के साथ जुर्माने की सजा का प्रावधान है. कोर्ट ने कहा केवल जुर्माना लगाकर छोड़ा नहीं जा सकता है. कोर्ट ने कहा दोनों ही सजा देनी होगी. यदि अधिकतम के साथ न्यूनतम  सजा तय है तो न्यूनतम से कम की सजा नहीं दी जा सकती. 

लेकिन जहां न्यूनतम सजा नहीं है वहां जज अपने विवेक से सजा दे सकता है.  कोर्ट ने नौकरी लगवाने की लालच देकर पैसा हजम करने वाले की 28 दिन की जेल में बिताने की अवधि को पर्याप्त माना है. 

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लेकिन जुर्माने की राशि 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख कर दी है. कोर्ट ने कहा कि जुर्माने का भुगतान दो माह के भीतर पीड़ित वादी को किया जाये. 

बता दें कि आशाराम यादव की दो साल की सजा और जुर्माने के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी. 
चिंतामणि दुबे ने एसएसपी इलाहाबाद को 15 मई 2002 को शिकायत की थी. उनके भाई शेष मणि दुबे को नौकरी का झांसा देकर सरकारी कर्मचारी आशाराम यादव ने 53 हजार रुपए.12 हजार रुपए वापसल किए और 41 हजार रुपए हड़प लिए. 

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एसएसपी के निर्देश पर कर्नलगंज थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी थी. पुलिस ने कोई अपराध न पाते हुए अंतिम रिपोर्ट लगा दी. कोर्ट ने संज्ञान लेकर सम्मन जारी किया और 5 वर्ष का सश्रम कारावास और दो लाख जुर्माना लगायाय

वहीं, सत्र न्यायालय ने सजा घटाकर दो साल कर दी और 50 हजार जुर्माना लगाया. जिसे याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई. जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने हिंदी भाषा में फैसला सुनाया.