कोरोना इफेक्ट : 'सीजफायर' ले डूबी गौतमबुद्ध नगर के डीएम को, एसटीएफ है योगी की 'तीसरी-आंख'
जिले में बेकाबू कोरोना के चलते सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद को लखनऊ में नहीं रोक पाए. व्यस्तताओं के बाद भी वह सोमवार को जिले में आ धमके. मुख्यमंत्री इस बात से खफा थे कि 'सीजफायर' कंपनी का विदेशी ऑडीटर जिले की सीमा से बाहर निकल कैसे गया.
गौतमबुद्ध नगर:
जिले में बेकाबू कोरोना (Corona Virus) के चलते सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) खुद को लखनऊ में नहीं रोक पाए. व्यस्तताओं के बाद भी वह सोमवार को जिले में आ धमके. मुख्यमंत्री इस बात से खासा खफा थे कि कोरोना जैसी त्रासदी के इस आलम में आखिर 'सीजफायर' कंपनी का विदेशी ऑडीटर चोरी-छिपे आकर जिले की सीमा से बाहर निकल कैसे गया? विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, "राज्य में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले गौतमबुद्ध नगर जिले में मिलने के चलते सूबे के सीएम की नजर भी यहां लगी थी. गौतमबुद्ध नगर सहित पूरे सूबे पर सीएम अपनी आंख गड़ाए हुए थे. वह स्थानीय प्रशासन के सीधे संपर्क में थे. जिला प्रशासन द्वारा ताबड़तोड़ लिए जा रहे तमाम प्रशासनिक फैसलों से सीएम चार-पांच दिन पहले तक काफी हद तक संतुष्ट भी थे."
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उत्तर प्रदेश शासन के सूत्रों के मुताबिक, "सब कुछ पटरी पर चलने के बाद अचानक बात बिगड़ गई. वजह थी नोएडा सेक्टर 137 स्थित सीजफायर कंपनी प्रबंधन की करतूत. इस कंपनी का प्रबंध निदेशक और उसका मातहत अफसर, जो विदेश से लौटे थे. दोनों कोरोना पॉजिटिव निकले. दोनों को क्वोरंटीन कर दिया गया. इसी बीच योगी तक बात पहुंची कि नोएडा की सीजफायर कंपनी में 13 और लोग भी कोरोना पॉजिटिव हैं. बस यहीं से मुख्यमंत्री का माथा ठनका. एक कंपनी में ही आखिर 15-18 कोरोना पॉजिटिव तैयार ही क्यों और कैसे हो गए?"
उप्र की हुकूमत में इस बात को लेकर जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गईं. कुछ अफसर जिलाधिकारी बी.एन. सिंह के काम की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. जबकि गौतमबुद्ध नगर जिले के आसपास के कुछ जिलों में तैनात आईएएस लॉबी को बी.एन. सिंह के तेजी से बढ़ते कदम फूटी आंख नहीं सुहा रहे थे. सरकार के अंदर के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो बी.एन. सिंह जिस तरह से गौतमबुद्ध नगर जिले में कोरोना के दौरान सामुदायिक रसोइयों की स्थापना. अस्पतालों का इंतजाम. कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ दिन-रात ताबड़तोड़ छापामारी. मौके पर ही उनके खिलाफ कार्रवाई करके एफआईआर दर्ज करवाकर और उनके ऊपर अर्थदंड डालकर, कोहराम मचाये हुए थे. यह सब आसपास के जिलों में तैनात अफसरों की एक लॉबी को फूटी आंख नहीं सुहा रहा था.
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इसी लॉबी में यूपी के कई वे आला-अफसरान भी शामिल हैं, जिनकी आंख मिचौली और सुस्त चाल के चलते दिल्ली से पार होकर हजारों श्रमिक एक ही रात में यूपी की सीमा में घुस पड़े. जिससे कानून व्यवस्था तो चरमराई ही थी. श्रमिकों को लेकर दिल्ली और यूपी की हुकूमत में भी मुंहजुबानी शुरू हो गयी थी.
इस आग में घी का काम किया था दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक राघव चड्ढा के ट्विटर पर डाले गये एक बयान ने. जिसमें उन्होंने श्रमिकों और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. बाद में राघव चड्ढा ने मामला गले की फांस बनता देखकर अपना बयान ट्विटर से डिलीट कर डाला. हांलांकि तब तक तमाम लोगों ने उस ट्विटर बयान का स्क्रीन शाट ले लिये था.
उल्लेखनीय है कि, राघव चड्ढा के खिलाफ यूपी के गाजियाबाद जिले के कवि नगर और गौतमबुद्ध नगर जिले के सेक्टर-20 कोतवाली थाने में दो मामले दर्ज कराये गये थे. कवि नगर थाने में सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी उपाध्याय ने और कोतवाली सेक्टर-20 नोएडा में सुप्रीम कोर्ट के ही वकील प्रशांत पटेल उमराव ने आप एमएलए राघव चड्ढा पर यह एफआईआर रविवार यानी 29 मार्च 2020 को दर्ज कराई थीं.
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यूपी शासन के एक आला अफसर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, "दरअसल यह बेहद नाजुक वक्त है. इसके बाद भी प्रशासनिक अमले में तैनात कुछ अधिकारी ओछी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं. यह मैं ही नहीं कह रहा हूं, बल्कि खुद सीएम साहब ने भी सोमवार की गौतमबुद्ध नगर की समीक्षा में खुलकर दो टूक अफसरों को कह दी. इस माहौल में हमें सिर्फ एकजुट होकर ईमानदारी से मानवीय ²ष्टिकोण से काम करना चाहिए. न कि कुर्सी की राजनीति. और अगर सूबे के सीएम तक अफसरों में राजनीति की बात पहुंच जाये. और वे खुद चीख-चीख कर अफसरों को नसीहत देते हुए राजनीति से बाज आने की चेतावनी दें, तो समझिये कि कोरोना जैसी महामारी के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था का अंदरूनी आलम क्या होगा?"
गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबा में कुछ साल पहले तैनात रहकर जा चुके तीन अफसरों ने कहा, "मैं अपनी आंख से देख रहा हूं कि कोरोना जैसी त्रासदी के दौर में भी दिल्ली से सटे आसपास के यूपी के जिलों में नंबर बढ़ाने के लिए मारकाट मची है. कुछ अफसर सोशल मीडिया पर अपनी फोटो-के-ऊपर फोटो पोस्ट करवा रहे हैं. कोई सिलेंडर भिजवाने की फोटो पोस्ट करवा रहा है. कोई चौकसी बरतते की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कराने में जुटा है. हमारी समझ में नहीं आता कि, आखिर प्रशासनिक अफसरों के इतने फोटो क्यों, कैसे और कहां से सोशल प्लेटफार्म्स पर वायरल हो रहे हैं."
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इन्हीं में से एक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ने कहा, "यह सब भेड़चाल है. लापरवाह अफसर सोच रहे हैं कि मुख्यमंत्री की नजर से वे बच जायेंगे. मगर ऐसा गलत है. मुख्यमंत्री और उनकी अपनी विशेष टास्क फोर्स की नजर गाजियाबाद से लेकर, बलिया, लखनऊ, राय बरेली, रामपुर, मुरादाबाद हो या फिर बरेली, बदायूं. सूबे के चप्पे-चप्पे पर तैनात आला-अफसरों पर है. अभी पूरा देश पूरा सूबा कोरोना जैसी महामारी से जूझने में जुटा है. सीएम हो या पीएम. सब दिन रात जागकर जुटे हैं. अभी इस मुसीबत और मारामारी में लापरवाही बरत रहे, साथ ही फोटोबाजी कर/करा के सरकार की आंखों में धूल झोंक रहे, सब के सब सीएम के एसटीएफ की नजरों में हैं. इन सबसे कोरोना के बाद भी निपट लिया जायेगा. पहली प्राथमिकता कोरोना के खात्मे की है."
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