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क्या फैज अहमद फैज की ये कविता हिंदू विरोधी है, जांच के लिए IIT कानपुर ने गठित की समिति

भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-कानपुर (IIT) ने एक समिति गठित की है. यह समिति यह तय करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है.

Updated on: 02 Jan 2020, 11:18 AM

लखनऊ:

भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-कानपुर (IIT) ने एक समिति गठित की है. यह समिति यह तय करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है. फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर यह समिति गठित की गई है. फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह हिंदू विरोधी गीत गाया था.

न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक समिति इसकी भी जांच करेगी कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस में शामिल होकर धारा 144 का उल्लंघन किया है. क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की और क्या फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है.

कविता की जिस लाइन पर बवाल मचा वह इस प्रकार है 'जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी, जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से, सब बुत उठवाए जाएँगे, हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएँगे, सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख़्त गिराए जाएँगे, बस नाम रहेगा अल्लाह का'.

यह कविता फैज अहमद फैज ने 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में और पाकिस्तान में सेना शासन के विरोध में लिखी गई थी. फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण वे कई सालों तक जेल में रहे.

गौरतलब है कि IIT के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिमार्च निकाला था. मार्च के दौरान छात्रों ने फैज अहमद फैज की यह कविता गाई थी. आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, 'वीडियो में छात्रों को फैज की कविता गाते हुए देखा जा रहा है, इस कविता को हिंदू विरोधी बताया जा रहा है.'