फूलपुर से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, नेहरू की विरासत वापस लाने की चुनौती

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतरने के बाद वो महीने-दो महीने में होने वाले लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद (प्रयागराज) के फूलपुर से ताल ठोंक सकती है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतरने के बाद वो महीने-दो महीने में होने वाले लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद (प्रयागराज) के फूलपुर से ताल ठोंक सकती है.

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kunal kaushal
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फूलपुर से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, नेहरू की विरासत वापस लाने की चुनौती

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (फाइल फोटो)

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतरने के बाद वो महीने-दो महीने में होने वाले लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद (प्रयागराज) के फूलपुर से ताल ठोंक सकती है. रायबरेली और अमेठी के बाद फूलपुर तीसरी ऐसी सीट हैं जिसे कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है क्योंकि यह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी संसदीय क्षेत्र रह चुका है और वो यहां से तीन बार चुनाव जीते थे. अब 2019 के महामुकाबले में पंडित नेहरू की परनतिनी प्रियंका गांधी वाड्रा मैदान में उतर सकती है.

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गौरतलब है कि कई सालों से बीजेपी के कब्जे वाले फूलपुर लोकसभा सीट पर बीते साल हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के नागेंद्र प्रतास सिंह पटेल ने बीजेपी उम्मीदवार को धूल चटाकर नए सांसद बन गए थे. इससे पहले इस सीट से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे.

पहले ऐसी भी अटकलें लगाई जा रही थी कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ने पर प्रियंका गांधी वहां से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं लेकिन अब कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी चुनावी मैदान में उतरेंगे. ऐसे में पूर्व यूपी के 41 सीटों को कमान संभाल रही प्रियंका गांधी के लिए एक ऐसे सीट की तलाश हो रही थी जहां से वो आसानी से जीत सकती है. ऐसे में अमेठी और रायबरेली के बाद कांग्रेस को फूलपुर से भारी समर्थन की उम्मीदें है, हालांकि अभी कांग्रेस पार्टी की तरफ से इसका कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू 1952 के पहले आम चुनाव में फूलपुर से जीत कर सांसद पहुंचे थे. उन्होंने इस सीट से लगातार तीन बार 1952, 1957 और 1962 में चुनाव जीता. साल 1964 में उनके निधन के बाद नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने इस सीट से चुनाव लड़ा और सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को हराकर कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया. हालांकि समय के साथ यहां कांग्रेस का जनाधार कमजोर होता गया जिसके बाद जनता दल, समाजवादी पार्टी, बीजेपी और फिर समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की.

Source : News Nation Bureau

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