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बसपा सुप्रीमो ने उठाई मांग, संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए आरक्षण

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने केंद्र सरकार से आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण पर दिए गए बयान पर मायावती कह चुकी हैं कि वह इससे सहमत नहीं हैं.

Updated on: 16 Feb 2020, 12:39 PM

लखनऊ:

बसपा अध्यक्ष मायावती ने आरक्षण व्यवस्था को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करते हुये कहा है कि उच्चतम न्यायालय में इससे जुड़े एक मामले में केन्द्र सरकार की सकारात्मक भूमिका नहीं होने के कारण शीर्ष अदालत ने नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण, मौलिक अधिकार नहीं होने की बात कही. उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में आरक्षण से जुड़े एक मामले में कहा था कि नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, आरक्षण व्यवस्था को बहाल करना राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकार में है.

रविवार को एक बार फिर मायावती ने तीन ट्वीट कर अपनी मांग रखी. उन्होंने लिखा 'कांग्रेस के बाद अब बीजेपी व इनकी केन्द्र सरकार के अनवरत उपेक्षित रवैये के कारण यहाँ सदियों से पछाड़े गए एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग के शोषितों-पीड़ितों को आरक्षण के माध्यम से देश की मुख्यधारा में लाने का सकारात्मक संवैधानिक प्रयास फेल हो रहा है, जो अति गंभीर व दुर्भाग्यपूर्ण है.'

दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा 'केन्द्र के ऐसे गलत रवैये के कारण ही मा. कोर्ट ने सरकारी नौकरी व प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को जिस प्रकार से निष्क्रिय/निष्प्रभावी ही बना दिया है उससे पूरा समाज उद्वेलित व आक्रोशित है. देश में गरीबों, युवाओं, महिलाओं व अन्य उपेक्षितों के हकों पर लगातार घातक हमले हो रहे हैं.'

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अंतिम ट्वीट में बसपा सुप्रीमो ने कहा 'ऐसे में केन्द्र सरकार से पुनः माँग है कि वह आरक्षण की सकारात्मक व्यवस्था को संविधान की 9वीं अनुसूची में लाकर इसको सुरक्षा कवच तब तक प्रदान करे जब तक उपेक्षा व तिरस्कार से पीड़ित करोड़ों लोग देश की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो जाते हैं, जो आरक्षण की सही संवैधानिक मंशा है.'

9वीं अनुसूची क्या है

1951 में केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर 9वीं अनुसूची का प्रावधान किया था. ताकि उसके द्वारा किए जाने वाले भूम सुधारों को अदालत में चुनौती न दी जा सके. उस वक्त सरकार द्वारा किए गए भूमि सुधारों को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की अदालतों में चुनौती दी गई थी. बिहार ने कानून को अवैध ठहराया था.

इस विषम स्थिति से बचने के और भूमि सुधार जारी रखने के लिए सरकार ने संविधान में अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम 1951 को जोड़ा. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है.