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दूसरी लहर में क्यों इतना खतरनाक साबित हुआ कोविड? BHU के वैज्ञानिक ने बताई वजह

देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक शोध करके इस बात का खुलासा किया है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर इतनी ज्यादा खतरनाक क्यों हुई.

Updated on: 15 May 2021, 08:06 PM

highlights

  • दूसरी लहर मेंं ज्यादा घातक हुए कोरोना वायरस
  • बीएचयू के जन्तु विज्ञान के प्रोफेसर ने बताई वजह
  • पूर्वांचल के 40 फीसदी लोगों में बन गई थी एंटीबॉडी

वाराणसी:

देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक शोध करके इस बात का खुलासा किया है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर इतनी ज्यादा खतरनाक क्यों हुई. BHU के जंतु विज्ञान के जीन वैज्ञानिकों ने ये वजह अपने शोध में ढूंढ निकाली है. वैज्ञानिकों ने बताया कि देश में आखिरकार कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर इतनी तबाही कैसे मचाई है. वैज्ञानिकों ने बताया कि दूसरी लहर में कोविड ज्यादा खतरनाक इसलिए हुआ क्योंकि इस बार के स्ट्रेन ने लोगों की हार्ड इम्यूनिटी या एंटीबॉडी का जल्दी खत्म कर दिया है, जिसकी वजह से वो पहली वेव की तुलना में ज्यादा घातक हो गया है.

बीएचयू के वैज्ञानिकों ने बताया कि शरीर की एंटी बॉडी को लेकर पहले इस बात का दावा किया जा रहा था कि ये 6 महीनों तक बरकरार रहेगी लेकिन ये महज एक भ्रम साबित हुआ. लोगों के शरीर की एंटी बॉडीज महज तीन महीनों में ही खत्म हो गई जिसकी वजह से कोरोना के खिलाफ शरीर में बने हॉर्ड इम्यूनिटी के विकसित होने के बावजूद कोरोना की दूसरी लहर लोगों के लिए पहले से कहीं ज्यादा घातक सिद्ध हुई.  

BHU के जूलोजी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के घातक होने के संबंध को सीधे हर्ड इम्यूनिटी या एंटीबॉडी से जोड़कर अध्ययन किया. इस अध्ययन के बाद प्रोफेसर चौबे ने बताया कि वाराणसी सहित 14 जिलों में साल 2020 के सितंबर से लेकर अक्टूबर तक एंटीबॉडी टेस्ट किया गया था. यह टेस्ट गलियों में ठेला लगाने वाले छोटे-छोटे वेंडर्स का किया गया था. उन्होने बताया कि उनकी टीम ने ये जानने के लिए स्ट्रीट वेंडर्स को चुना क्योंकि ज्यादा एक्सपोस्ड लोगों में किस लेवल की इम्यूनिटी विकसित हुई. 

25-30 फीसदी लोगों में ही एंटीबॉडी बनी मिली
प्रोफेसर चौबे ने बताया कि पहली वेव के बाद जो लोग कोरोना से ठीक हुए थे उनमें महज 25-30% लोगों में एंटीबाॅडी बनी मिली. उन्होंने बताया कि पूर्वांचल के लगभग 40 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी बन चुकी थी. इसके अलावा दुनिया में कई और ऐसे शोध आए हैं जिसमें यह देखा गया था कि शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज 6 महीनों तक रहते हैं. ICMR ने भी अपने शोध में यही बताया था. इसी आधार पर माना गया था कि लोगों के शरीर में अगले 6 महीनों तक एंटी बॉडीज रहेगी और इस दौरान कोरोना की दूसरी लहर की कोई उम्मीद नहीं थी. इन 6 महीनों के दौरान देश में वैक्सीनेशन अभियान चलाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन दे दी जाएगी और हम इस जंग को जीत लेंगे लेकिन मामला इसके उलट ही हो गया और आगे की कहानी दुनिया के सामने है.  

गाइडलाइंस का पालन न करना भी बना बड़ा कारण
प्रोफेसर चौबे ने आगे बताया कि जब देश में कोरोना की दूसरी लहर आई तब लोगों की इम्यूनिटी वाॅल टूट चूकी थी और सभी ने सरकार द्वारा जारी किए गए कोविड प्रोटोकाॅल का पालन करना भी बंद कर दिया था. उन्होंने आगे बताया कि अब इस महामारी को रोकने के लिए हमे तेजी से वैक्सीनेशन अभियान चलाना पड़ेगा. अगर हम ऐसा करने में सफल हो पाएं तभी हम तीसरी लहर का मुकाबला कर पाएंगे. लेकिन ये तभी संभव हो पाएगा जब हम सरकार द्वारा जारी की गई गाइड लाइंस का ठीक से पालन करें. उन्होंने आगे बताया कि अभी तक इस बात का पता नहीं चल पाया है कि शरीर की एंटीबाॅडी 3-4 महीने में ही क्यों खत्म हो गई?