Advertisment

AyodhyaVerdict:रामायण से लेकर बौद्ध साहित्य में भी अयोध्या का जिक्र, जानें चीनी यात्रियों ने क्‍या कहा था

AyodhyaVerdict: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले में शनिवार को फैसला सुनायेगा.

author-image
Drigraj Madheshia
एडिट
New Update
AyodhyaVerdict:रामायण से लेकर बौद्ध साहित्य में भी अयोध्या का जिक्र, जानें चीनी यात्रियों ने क्‍या कहा था

अयोध्‍या का फाइल फोटो( Photo Credit : फाइल)

Advertisment

अयोध्या का उल्लेख महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है.रामायण के अनुसार यह नगर सरयू नदी के तट पर बसा हुआ था तथा कोशल राज्य का सर्वप्रमुख नगर था. अयोध्या को देखने से ऐसा प्रतीत होता था कि मानों मनु ने स्वयं अपने हांथों के द्वारा अयोध्या का निर्माण किया हो.  अयोध्या नगर 12 योजन लम्बाई में और 3 योजन चौड़ाई में फैला हुआ था, जिसकी पुष्टि वाल्मीकि रामायण में भी होती है.

एक परवर्ती जैन लेखक हेमचन्द्र ने नगर का क्षेत्रफल 12×9 योजन बतलाया है जो कि निश्चित ही अतिरंजित वर्णन है.  साक्ष्यों के अवलोकन से नगर के विस्तार के लिए कनिंघम का मत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लगता है.उनकी मान्यता है कि नगर की परिधि 12 कोश (24 मील) थी, जो वर्तमान नगर की परिधि के अनुरूप है. धार्मिक महत्ता की दृष्टि से अयोध्या हिन्दुओं और जैनियों का एक पवित्र तीर्थस्थल था.इसकी गणना भारत की सात मोक्षदायिका पुरियों में की गई है.ये सात पुरियाँ निम्नलिखित थीं-

यह भी पढ़ेंःAyodhyaVerdict: हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है अयोध्या 

अयोध्या में कंबोजीय अश्व एवं शक्तिशाली हांथी थे.रामायण के अनुसार यहां चातुर्वर्ण्य व्यवस्था थी- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र.उन्हें अपने विशिष्ट धर्मों एवं दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता था.रामायण में उल्लेख है कि कौशल्या को जब राम वन गमन का समाचार मिला तो वे मूर्च्छित होकर गिर पड़ीं.उस समय कौशल्या के समस्त अंगों में धूल लिपट गयी थी और श्रीराम ने अपने हांथों से उनके अंगों की धूल साफ़ की.

मध्यकाल में अयोध्या

मध्यकाल में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय, अयोध्या बेचारी उपेक्षिता ही बनी रही, यहां तक कि मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहांर अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई, जो आज भी विद्यमान है.

यह भी पढ़ेंः AyodhyaVerdict: अयोध्या पर फैसले से पहले नरेंद्र मोदी-योगी आदित्‍यानाथ, RSS और मुस्लिम धर्मगुरुओं की ये अपील

मस्जिद में लगे हुए अनेक स्तंभ और शिलापट्ट उसी प्राचीन मंदिर के हैं.अयोध्या के वर्तमान मंदिर कनकभवन आदि अधिक प्राचीन नहीं हैं और वहां यह कहांवत प्रचलित है कि सरयू को छोड़कर रामचंद्रजी के समय की कोई निशानी नहीं है.कहते हैं कि अवध के नवाबों ने जब फ़ैज़ाबाद में राजधानी बनाई थी तो वहां के अनेक महलों में अयोध्या के पुराने मंदिरों की सामग्री उपयोग में लाई गई थी.

बौद्ध साहित्य में अयोध्या

बौद्ध साहित्य में भी अयोध्या का उल्लेख मिलता है.गौतम बुद्ध का इस नगर से विशेष सम्बन्ध था.उल्लेखनीय है कि गौतम बुद्ध के इस नगर से विशेष सम्बन्ध की ओर लक्ष्य करके मज्झिमनिकाय में उन्हें कोसलक (कोशल का निवासी) कहां गया है. धर्म-प्रचारार्थ वे इस नगर में कई बार आ चुके थे.एक बार गौतम बुद्ध ने अपने अनुयायियों को मानव जीवन की निस्वारता तथा क्षण-भंगुरता पर व्याख्यान दिया था.अयोध्यावासी गौतम बुद्ध के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने उनके निवास के लिए वहां पर एक विहांर का निर्माण भी करवाया था.
संयुक्तनिकाय में उल्लेख आया है कि बुद्ध ने यहां की यात्रा दो बार की थी.उन्होंने यहां फेण सूक्त और दारुक्खंधसुक्त का व्याख्यान दिया था. 

चीनी यात्रियों का यात्रा विवरण

फ़ाह्यान: चीनी यात्री फ़ाह्यान ने अयोध्या को 'शा-चे' नाम से अभिहित किया है.उसके यात्रा विवरण में इस नगर का अत्यन्त संक्षिप्त वर्णन मिलता है.फ़ाह्यान के अनुसार यहां बौद्धों एवं ब्राह्मणों में सौहांर्द नहीं था.उसने यहां उन स्थानों को देखा था, जहां बुद्ध बैठते थे और टहलते थे.इस स्थान की स्मृतिस्वरूप यहां एक स्तूप बना हुआ था.

यह भी पढ़ेंःAyodhyaVerdict: अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शनिवार को, जानें 1528 से 1992 तक की घटनाएं

ह्वेन त्सांग: ह्वेन त्सांग नवदेवकुल नगर से दक्षिण-पूर्व 600 ली यात्रा करके और गंगा नदी पार करके अयुधा (अयोध्या) पहुँचा था.यह सम्पूर्ण क्षेत्र 5000 ली तथा इसकी राजधानी 20 ली में फैली हुई थी.यह असंग एवं बसुबंधु का अस्थायी निवास स्थान था.यहां फ़सलें अच्छी होती थीं और यह सदैव प्रचुर हरीतिमा से आच्छादित रहता था.इसमें वैभवशाली फलों के बाग़ थे तथा यहां की जलवायु स्वास्थ्यवर्धक थी.

यह भी पढ़ेंःAyodhyaVerdict: अयोध्‍या पर फैसले को लेकर देशभर में अलर्ट, कई जगह स्‍कूल-कॉलेज सोमवार तक बंद

यहां के निवासी शिष्ट आचरण वाले, क्रियाशील एवं व्यावहांरिक ज्ञान के उपासक थे.इस नगर में 100 से अधिक बौद्ध विहांर और 3000 से अधिक भिक्षुक थे, जो महांयान और हीनयान मतों के अनुयायी थे.यहां 10 देव मन्दिर थे, जिनमें अबौद्धों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी.ह्वेन त्सांग के अनुसार राजधानी में एक प्राचीन संघाराम था.यह वह स्थान है जहां देशबंधु ने कठिन परिश्रम से विविध शास्त्रों की रचना की थी.इन भग्नावशेषों में एक महांकक्ष था.जहां पर बसुबंधु विदेशों से आने वाले राजकुमारों एवं भिक्षुओं को बौद्धधर्म का उपदेश देते थे.

यह भी पढ़ेंःAyodhyaVerdict: 1858 से चल रहे अयोध्‍या विवाद पर फैसला शनिवार को, देखें टाइम लाइन

ह्वेन त्सांग लिखते हैं कि नगर के उत्तर 40 ली दूरी पर गंगा के किनारे एक बड़ा संघाराम था, जिसके भीतर अशोक द्वारा निर्मित एक 200 फुट ऊँचा स्तूप था.यह वही स्थान था जहां पर तथागत ने देव समाज के उपकार के लिए तीन मास तक धर्म के उत्तमोत्तम सिद्धान्तों का विवेचन किया था.इस विहांर से 4-5 ली पश्चिम में बुद्ध के अस्थियुक्त एक स्तूप था.जिसके उत्तर में प्राचीन विहांर के अवशेष थे, जहां सौतान्त्रिक सम्प्रदाय सम्बन्धी विभाषा शास्त्र की रचना की गई थी.

यह भी पढ़ेंः AyodhyaVerdict: सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा अयोध्‍या विवाद, जानें अब तक क्या-क्‍या हुआ

ह्वेन त्सांग के अनुसार नगर के दक्षिण-पश्चिम में 5-6 ली की दूरी पर एक आम्रवाटिका में एक प्राचीन संघाराम था.यह वह स्थान था जहां असङ्ग़ बोधिसत्व ने विद्याध्ययन किया था.
 आम्रवाटिका से पश्चिमोत्तर दिशा में लगभग 100 क़दम की दूरी पर एक स्तूप था, जिसमें तथागत के नख और बाल रखे हुए थे.इसके निकट ही कुछ प्राचीन दीवारों की बुनियादें थीं.यह वही स्थान है जहां पर वसुबंधु बोधिसत्व तुषित स्वर्ग से उतरकर असङ्ग़ बोधिसत्व से मिलते थे.

यह भी पढ़ेंः AyodhyaVerdict: अयोध्या विवाद सुलझाने की हुई थीं ये 8 बड़ी नाकाम कोशिशें, अब फैसले की घड़ी

(Input: विभिन्‍न पुस्‍तकों, समाचार पत्राें और वेब पोर्टलों से ली गई है)

Source : साजिद अशरफ

Supreme Court AyodhyaVerdict Ayodhya Facts Ayodhya Ayodhya Verdict
Advertisment
Advertisment
Advertisment