अयोध्या में विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले एंट्री करने वाला शख्स एक सिख था, जिसने 1858 में अंदरुनी हिस्से में झंडा भी लहराया था. अयोध्या मामले की सुनवाई के 31वें दिन आज ज़फरयाब जिलानी की जिरह के दौरान संविधान पीठ को ये बताया गया. दरअसल जस्टिस एस ए बोबड़े ने जिलानी से मस्जिद के अंदर हिंदुओ के घुसने और पूजा करने के दावे पर सवाल किए. जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से पूछा कि क्या मस्जिद बनने बाद 1855 से पहले हिंदुओं ने बाउंड्री के अंदर जाकर पूजा करने की कोशिश की.
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जिलानी ने जवाब दिया कि ऐसा नहीं है.1865 में ज़मीन के बाहरी हिस्से यानि रामचबूतरे पर हिंदू पूजा करने लगे. लेकिन 1858 में जिस शख्स ने विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले एंट्री की, वो एक सिख था. उन्होंने अंदर घुसकर झंडा लहराया. इस पर जस्टिस बोबड़े ने टिप्पणी की कि सिख भी श्रीराम में आस्था रखते हैं. सिख धर्म की शिक्षाओं में उनका भी उल्लेख है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ज़फरयाब जिलानी ने कहा कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे साबित हो कि बाबरी मस्ज़िद के भीतर वाले हिस्से में श्रीराम का जन्मस्थान है.
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पैट्रिक कार्नेज और कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि 1857 में भी सिपाही विद्रोह के दौरान मुसलमान और हिंदू मस्ज़िद के अंदर प्रार्थना करते थे. जजों ने उस वक़्त के कुछ गैजेटियर को लेकर भी जिलानी से सवाल पूछे. जस्टिस चन्दचूड़ ने कहा कि उस वक़्त के अधिकारिक रिपोर्ट में अयोध्या में श्री राम का जन्मस्थान होने का उल्लेख है. इस पर जिलानी ने 1862 की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसके मुताबिक रामकोट किले में मौजूद एक जगह को भी श्रीराम का जन्मस्थान माना जाता रहा.
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इसके बाद जिलानी ने कुछ और दस्तावेजों का हवाला दिया. जिसके मुताबिक केंद्रीय गुम्बद से 60 फ़ीट की दूरी पर मौजूद रामचबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानकर वहां पूजा होती रही. इस पर जस्टिस बोबड़े ने उन्हें टोका कि ये वही बात है, जो आप कल कह रहे थे, लेकिन जिलानी ने जवाब दिया कि राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानने का विश्वास हिंदुओ का है.
1989 से पहले मध्य गुम्बद के नीचे की जगह को कभी श्री राम का जन्मस्थान नहीं माना गया
इसके बाद जस्टिस अशोक भूषण ने जिलानी से विवादित जगह को श्रीराम जन्मस्थान मानने को लेकर दिए गए बयानों को लेकर सवाल पूछे. जिलानी ने जवाब में कहा कि आप सैकड़ों पेज के इन गवाहियों को समग्र रूप में देखें. एक-दो लाइन को लेकर आप कोई राय नहीं बना सकते. जिलानी ने कहा कि 1989 से पहले मध्य गुम्बद के नीचे की जगह को कभी श्री राम का जन्मस्थान नहीं माना गया. 1950 से लेकर 1989 तक इस दावे के समर्थन में हिंदू पक्ष की ओर से कोई मुकदमा दायर नहीं हुआ.