राम मंदिर इतिहास! समझाइश.. सुनवाई और फैसला, जानिए पूरा सच
आज भी कई लोग मंदिर के असल इतिहास, इससे जुड़े विवाद और मंदिर निर्माण की राह में आए अहम पड़ाव से वाकिफ नहीं है, इसलिए आज हम फिर एक बार इस पूरे सफर को शब्दों के जरिए अनुभव करेंगे...
नई दिल्ली :
रामलला आने वाले हैं... श्री राम 22 जनवरी 2024 को अयोध्या के नए मंदिर में विराजमान होने के लिए तैयार हैं, जिसके लिए तमाम तैयारियां फिलहाल जारी हैं. निःसंदेह ये एक ऐतिहासिक क्षण होने वाला है, जिसके साक्षी हम सभी बनने जा रहे हैं. करीब 492 साल के संघर्षों से भरे इस सफर में हमारे सामने कई चुनौतियां आई, कई मोड़ आए, मगर बावजूद इसके आस्था और मंदिर निर्माण की प्रतिबद्धता ने आखिरकार हमें इस ऐतिहासिक लम्हे का गवाह बनने एक सुनहरा मौका दे ही दिया...
मगर, आज भी कई लोग मंदिर के असल इतिहास, इससे जुड़े विवाद और मंदिर निर्माण की राह में आए अहम पड़ाव से वाकिफ नहीं है, इसलिए आज हम फिर एक बार इस पूरे सफर को शब्दों के जरिए अनुभव करेंगे...
मस्जिद.. मूर्ती और मंदिर
राम मंदिर से जुड़े विवाद की असल शुरुआत साल 1528 से हुई, तब जब मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने मंदिर की जगह पर तीन गुंबद वाली एक मस्जिद का निर्माण कराया. हिंदूओं का दावा था कि, मस्जिद की मुख्य गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थान था. हालांकि उस वक्त भी तमाम विवादों के बाद, ये मस्जिद यूं ही खड़ी रही.
अब वक्त आ गया 1853 का, जब एक बार फिर इस मस्जिद को लेकर, हिंदू और मुसलमानों में तकरार बढ़ने लगी. इसे देखते हुए 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी, साथ ही मुसलमानों को ढांचे के अंदर, जबकि हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने का फरमान दिया.
मगर फिर तकरीबन 90 साल बाद, 23 दिसंबर 1949 की तारीख को इस विवाद ने विकराल रूप धारण कर लिया. जब तड़के सुबह भगवान राम की मूर्ती मस्जिद में पाई गईं. मुसलमानों का कहना था कि ये बीती रात चुपचाप मस्जिद में रखी गई है, जबकि हिंदुओं का मानना था कि यहां भगवान राम स्वयं प्रकट हुए हैं.
अब ये मामला उत्तर प्रदेश सरकार के पास पहुंचा, जहां सरकार ने मस्जिद से मूर्ती हटाने का आदेश दिया, मगर तत्कालीन जिला मैजिस्ट्रेट केके नायर इस फैसले से पूरी तरह खिलाफ थे, लिहाजा मामले में दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से सरकार ने इसे विवादित ढांचा करार देते हुए, यहां ताला लगवा दिया.
जब अदालत की दहलीज पर पहुंचे रामलला...
अब ये मामला न सिर्फ राज्य, बल्कि देशभर में सुर्खियां बटोर रहा था. वो साल था 1950 का, जब मंदिर-मस्जिद विवाद का मामला फैजाबाद सिविल कोर्ट पहुंचा, जहां हिंदू पक्ष द्वारा दो अर्जी दाखिल कर, विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखने और पूजा करने की इजाजत मांगी. इसी बीच निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में तीसरी अर्जी दाखिल की.
इसके जवाब में साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह के पजेशन और मुर्ती हटाने की मांग को लेकर अपनी अर्जी दाखिल की. यहीं से विश्व हिंदू परिषद की एंट्री हुई, जब साल 1984 में विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए एक कमिटी का गठन हुआ. इसके बाद फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए विवादित ढांचे पर से ताला हटाने का फरमान जारी किया.
यूं सुर्ख हो गया मंदिर-मस्जिद विवाद...
अभी जब ये विवाद, दर-दर अदालतों की ठोकरे खा रहा था, तभी 6 दिसंबर 1992 की तारीख को देश में बहुत बड़ा कांड हो गया. दरअसल इस तारीख को वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे पर चढ़ाई कर, इसे गिरा दिया. इस वजह से देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए.
इसकी ठीक 10 साल बाद, 2002 में गुजरात के गोधरा में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में आग लगा दी गई, जिसमें तकरीबन 58 लोगों की मौत हो गई, जिसके चलते अबकी बार गुजरात दंगों की चपेट में आ गया, जिसमें 2 हजार से ज्यादा लोगों की मौत दर्ज की गई.
समझाइश.. सुनवाई और ऐतिहासिक फैसला...
दौर वो भी आया, जब 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया, जिसपर अगले ही साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. फिर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया.
बावजूद इसके कोई नतीजा न निकलने पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2019 से अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की. फिर 16 अक्टूबर 2019 सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. फिर 9 नवंबर 2019 की ऐतिहासिक तारीख को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली. वहीं मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया गया.
यूं नए कलेवर में तबदील हुआ राम मंदिर...
25 मार्च 2020 की तारीख को रामलला टेंट से निकलर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट किए गए. फिर इसी साल 5 अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ. और अब 22 जनवरी 2024 को इसी जगह पर गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है...
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