Ayodhya Mandir: सरयू किनारे काले राम मंंदिर का इतिहास, जानें कैसे पड़ा ये नाम

Ayodhya Mandir: यह विग्रह 1748 के आसपास सरयू किनारे साहस्त्र धारा के पास महाराष्ट्रीयन संत नरसिंह राव मोघे को मिली.

Ayodhya Mandir: यह विग्रह 1748 के आसपास सरयू किनारे साहस्त्र धारा के पास महाराष्ट्रीयन संत नरसिंह राव मोघे को मिली.

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Mohit Saxena
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Kalaram Temple

Kalaram Temple( Photo Credit : social media)

Ayodhya Mandir: अयोध्या के सरयू किनारे राम कि पैड़ी स्थित काले राम का मंदिर. हर रोज हजारों कि तादात मे श्रद्धालु यहां  दर्शन के लिए पहुंचते है. लेकिन मंदिर स्थापित राम, लक्ष्मण भरत, शत्रुघ्न और सीता जी कि मूर्तियों को लेकर मान्यता है कि इन मूर्तियों को विक्रमदित्य ने राम जन्मभूमि में स्थापित की थी, मगर जब 1528 के आसपास   बाबर कि सेना ने जब अयोध्या मे जन्मभूमि पर आक्रमण किया तो तत्कालीन पुजारी श्यामानंद ने भगवान के विग्रह को बचाने के लिए सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया था. 

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यह विग्रह 1748 के आसपास सरयू किनारे साहस्त्र धारा के पास महाराष्ट्रीयन संत नरसिंह राव मोघे को मिली. मान्यता है कि मूर्ति के मिलने से पहले नरसिम्हाराव को तीन-तीन बार स्वप्न में सरयू में मूर्ति होने की जानकारी  हुई. मान्यता के अनुसार स्वप्न में ही मिले आदेश के बाद जब वे सरयू नदी के पास पहुंचे तो उन्हें मूर्ति मिली. जिसके बाद काले राम कि प्रतिमा को सरयू किनारे राम कि पैड़ी पर स्थापित किया गया.

क्यों पड़ा कालेराम पड़ा नाम

साल 1528 के बाद प्रतिमा 1748 के आसपास मिली थी. चूंकी 220 वर्ष तक नदी के तलहटी में पड़े होने के  चलते ये और काली पड़ गई थी. इसलिए मूर्ति काली पड़ गई थी. ऐसे में हाथ में मूर्ति लेते ही संत नरसिम्हाराव के मुंह से अचानक 'कालेराम' शब्द निकल पड़ा. जिसके बाद इस विग्रह को जहां स्थापित किया गया, मंदिर का नाम कालेराम ही रखा गया.

Source : Naresh Kumar Bisen

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