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इलाहाबाद लोकसभा सीट: जानिए क्या हैं मुद्दे और चुनावी गणित

इलाहाबाद लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि रही है.

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Yogendra Mishra
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इलाहाबाद लोकसभा सीट: जानिए क्या हैं मुद्दे और चुनावी गणित

प्रतीकात्मक फोटो

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इलाहाबाद लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि रही है. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी, बीजेपी से योगेश शुक्ला, सपा से राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल उर्फ खरे और आम आदमी पार्टी से किन्नर अखाड़े की महामडलेश्वर भवानी नाथ वाल्मीकि यहां मैदान में हैं, 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां मोदी रथ पर सवार भाजपा ने एक तरफा माहौल बना दिया था. वहीं 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में कई सियासी सूरमाओं की प्रतिष्ठा दांव पर है.

नेहरु गांधी खानदान का पैतृक शहर होने और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के प्रयागराज से चुनावी आगाज करने के चलते जहां कांग्रेस के लिए दोनों सीटें नाक का सवाल बनी हुई हैं. तो वहीं सपा और बसपा गठबंधन के लिए भी इलाहाबाद संसदीय सीट जीतने के खास मायने हैं. जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या सहित चार-चार भारी भरकम विभागों वाले मंत्रियों के लिए भी इलाहाबाद सीट प्रतिष्ठा का सबब बनी हुई हैं, ख़ास बात ये है की इन्ही मंत्रियों में से एक रीता बहुगुणा जोशी खुद प्रत्याशी भी हैं.

बीते लोकसभा चुनाव में प्रयागराज जिले की दोनों संसदीय सीटों इलाहाबाद और फूलपुर पर भारतीय जनता पार्टी ने अपना परचम लहराया था. लेकिन फूलपुर उपचुनाव में फूलपुर संसदीय सीट पर सपा का कब्जा हो गया है. लेकिन बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में महागठबंधन के सामने आने और मोदी की एयर स्ट्राइक के बाद दोनों ही लोकसभा सीटों पर रोचक मुकाबला रहने की उम्मीद है. इलाहाबाद संसदीय सीट के क्या हैं असल मुद्दे और जातीय समीकरण कैसे बिगाड़ेंगे दिग्गजों का खेल आइए जानते हैं.

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इलाहाबाद लोकसभा सीट पर 2014 में श्यामाचरण गुप्ता ने लंबे समय बाद भाजपा को जीत दिलाई. डॉ मुरली मनोहर जोशी को हराकर लगातार दो बार इलाहाबाद संसदीय सीट पर सपा के रेवती रमण सिंह जीते थे. 2014 में सपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया और मैदान में उतारा लेकिन भाजपा की लहर में कुंवर रेवती रमण सिंह को हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के टिकट पर श्यामाचरण गुप्ता मैदान में उतरे और 313772 वोट पाकर सांसद चुने गए. जबकि सपा के रेवती रमण सिंह को 251763 वोट ही मिले. वहीं इसी सीट पर बसपा से केशरी देवी पटेल 162073 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे.

उस वक्त कांग्रेसी उम्मीदवार रहे नंद गोपाल गुप्ता नंदी को चौथे नंबर पर संतोष करना पड़ा था. लेकिन अब राजनीतिक परिस्थियां बदली है. उस समय के सभी विरोधी उम्मीदवार दिग्गज नेता अब भारतीय जनता पार्टी में हैं. भाजपा सांसद श्यामाचरण भी पार्टी छोड़ बांदा से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. इलाहाबाद संसदीय सीट के मुद्दों की अगर बात करें तो औद्योगिक क्षेत्र नैनी बंदी के कगार पर है जो कि चुनाव में बड़ा मुद्दा होगा. यमुनापार इलाके में पेयजल संकट और सिंचाई का संकट भी सालों से बना हुआ है. औद्योगिक इकाइयों के बंद होने से रोगजगार भी बड़ा मुद्दा होगा. यमुनापार को अलग जिला घोषित करने की भी मांग को राजनीति पार्टियां चुनावी मुद्दा बना सकती हैं.

 इलाहाबाद में मतदाताओं की संख्या 

चुनाव वर्ष 2014 2019
कुल मतदाता 1666569 1693447
पुरुष मतदाता 917403 927964
महिला मतदाता 749001 765288 
अन्य 165 195
इलाहाबाद संसदीय सीट में बढ़े कुल मतदाता 26878

वहीं जातीय समीकरण की अगर बात करें तो इलाहाबाद संसदीय सीट पर सवा लाख यादव, दो लाख मुस्लिम, दो लाख दस हजार कुर्मी, दो लाख 35 हजार ब्राह्मण, पचास हजार ठाकुर-भूमिहार, ढ़ाई लाख दलित, एक लाख कोल, डेढ़ लाख वैश्य, 80 हजार मौर्या और कुशवाहा, चालीस हजार पाल, एक लाख 25 हजार निषाद बिंद, एक लाख विश्वकर्मा और प्रजापति व अन्य वोटर हैं.

इलाहाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी ने योगी सरकार में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को मैदान में उतारा है, जो कभी कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा चुकी हैं. वहीं, कांग्रेस ने योगेश शुक्ला पर दांव लगाया है, जो मुरली मनोहर जोशी के बाद 2009 में बीजेपी से चुनाव मैदान में उतरे थे. इस तरह से इलाहाबाद की सियासी लड़ाई में चेहरे वही लेकिन जंग नई है.

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इलाहाबाद सीट पर हो रहे लोकसभा चुनाव से जुड़ा दिलचस्प पहलू ये है कि रीता बहुगुणा जोशी जो बीजेपी प्रत्याशी है वो कभी कांग्रेस की कद्दावर नेता रही थीं और कांग्रेस के प्रत्याशी योगेश शुक्ला हाल तक बीजेपी नेता थे और उन्होंने एक बार बीजेपी के टिकट पर एक बार लोकसभा चुनाव भी लड़ा था. लेकिन हाल में वो बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हो गए. जब टिकट मिला तो बीजेपी कार्यकर्ताओं को पता चला कि योगेश शुक्ला अब कांग्रेस के नेता बन गए हैं.

इस सीट पर कांग्रेस की हालत बेहद दिलचस्प है. 'बहुगुणा परिवार' की राजनीतिक विरासत को यूपी में संभाल रहीं रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं. 2014 में इलाहाबाद सीट से कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले नंद गोपाल नंदी भी हाथ का साथ छोड़कर कमल थामकर योगी सरकार में मंत्री हैं.

रीता बहुगुणा जोशी के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. रीता खुद भी इलाहाबाद सीट से 1999 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में किस्मत आजमा चुकी हैं. लेकिन वह यहां से जीतकर संसद नहीं पहुंच सकी हैं. हालांकि इलाहाबाद से मेयर का चुनाव जीतने में जरूर सफल रही थीं.

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दूसरी ओर बीजेपी से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले योगेश शुक्ला कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतरे हैं. योगेश शुक्ला 2009 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद सीट से बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन मुरली मनोहर जोशी की राजनीतिक विरासत को वह आगे नहीं बढ़ा सके.

उन्हें सपा के रेवती रमण सिंह के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. करीब 60 हजार वोटों से साथ वो तीसरे नंबर पर रहे. 25 साल से बीजेपी से जुड़े रहे योगेश शुक्ला इस बार टिकट की आस लगाए हुए थे. लेकिन पार्टी ने रीता बहुगुणा को मैदान में उतारा तो नाराज होकर उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया.

वैसे योगेश शुक्ला के लिए इलाहाबाद में कांग्रेस की वापसी कराना आसान नहीं है. यहां कांग्रेस आख़िरी चुनाव 1984 में जीती थी, तब अमिताभ बच्चन ने लोकदल उम्मीदवार और रीता बहुगुणा जोशी के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया था. हालांकि 1971 में बहुगुणा ने इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी.

बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे, कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे. बाद में कांग्रेस छोड़कर अलग हो गए. लेकिन 1989 का चुनाव उनकी पत्नी और रीता बहुगुणा की मां कमला बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी से लड़ा लेकिन वो जनता दल उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र से हार गईं. ऐसे में रीता बहुगुणा जोशी की चुनौती भी इतनी आसान नहीं है जितनी कि समझी जा रही है.

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महागठबंधन की ओर से सपा ने जहां कुर्मी प्रत्याशी के तौर पर राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल को उतारा है, जिनके भतीजे प्रवीण पटेल फूलपुर सीट से बीजेपी के विधायक हैं. दलित, मुस्लिम, कुर्मी और यादव मतों को वह एकजुट करने में कामयाब रहते हैं और कांग्रेस के योगेश शुक्ला ब्राह्मण मतों में सेंधमारी करते हैं तो रीता की राह आसान नहीं होगी.

वहीं जातीय समीकरण की अगर बात करें तो इलाहाबाद संसदीय सीट पर सवा लाख यादव, दो लाख मुस्लिम, दो लाख दस हजार कुर्मी, दो लाख 35 हजार ब्राह्मण, पचास हजार ठाकुर-भूमिहार, ढ़ाई लाख दलित, एक लाख कोल, डेढ़ लाख वैश्य, 80 हजार मौर्या और कुशवाहा, चालीस हजार पाल, एक लाख 25 हजार निषाद बिंद, एक लाख विश्वकर्मा और प्रजापति व अन्य वोटर हैं.

प्रयागराज की दोनों लोकसभा सीटों पर छठें चरण में 12 मई को मतदान होना है. अब देखना है जिले में विश्व स्तरीय कुंभ 2019 कराने वाले मोदी -योगी के उम्मीदवारों को जनता आशीर्वाद देती है. या फिर कार्यकर्ताओ की उपेक्षा उपचुनाव जैसा परिणाम देकर सत्ता की राह आसान बनाती हैं.

Source : Manvendra Singh

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