UP की प्राइमरी स्कूल की टीचरों को HC से मिली राहत, इस हालात में हो सकेगा तबादला
उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूल की शिक्षिकाओं के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा है कि बच्चे की बीमारी शिक्षिका के अंतरजनपदीय तबादले का वैध आधार है.
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्राइमरी स्कूल (Primary School) की शिक्षिकाओं के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा है कि बच्चे की बीमारी शिक्षिका के अंतरजनपदीय तबादले (Inter-state transfers) का वैध आधार है. कोर्ट ने ये भी कहा कि बच्चे की बीमारी एक संवेदनशील मामला है और इस पर विचार न करके तबादला देने से इंकार करना अनुचित है. कोर्ट ने अंतरजनपदीय स्थानांतरण से इंकार करने के 27 फरवरी 2020 के आदेश को रद्द करते हुए बेसिक शिक्षा परिषद प्रयागराज (Prayagraj) को एक महीने के अंदार याचिका के स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है.
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कोर्ट के मुताबिक, अध्यापक सेवा नियमावली के नियम 8(2)(डी) का उद्देश्य महिला के हितों की रक्षा करना है इसलिए उसे उस स्थान पर नियुक्ति दी जानी चाहिए, जहां उसका पति कार्यरत है. सेवा नियमावली में बच्चे की बीमारी का कोई जिक्र नहीं है. यह अक्षम व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम 2016 में दिया गया है. 2 दिसंबर 2019 का शासनादेश इसी अधिनियम के आधार पर जारी किया गया है.
बता दें कि कोर्ट ने ये आदेश प्रयागराज की शिक्षिका सईदा रुखसार मरियम रिजवी की याचिका पर दिया है. याचिका मरियम रिजवी के वकील ने इस मामले पर बताया कि याचिका का साढ़े पांच साल का बेटा अस्थमा से पीड़ित है और उसके पति लखनऊ में बिजली विभाग में इंजीनियर पद पर कार्यरत है. इस वजह से उन्होंने बेटे की बीमारी का हवाला देकर अंतरजनपदीय तबादले की मांग की थी लेकिन आवेदन बिना कोई कारण बताए निरस्त कर दिया गया. स्थानांतरण संबंधी प्रत्यावेदन रद्द करते समय सेवा नियमावली और दो दिसंबर 2019 के शासनादेश का ध्यान नहीं रखा गया.
अधिवक्ता का कहना था कि स्थानांतरण संबंधी प्रत्यावेदन रद्द करते समय सेवा नियमावली और दो दिसंबर 2019 के शासनादेश का ध्यान नहीं रखा गया. अधिवक्ता ने कुमकुम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में दिए फैसले का हवाला भी दिया.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षकों को राहत देते हुए बीच सत्र में उनके तबादलों को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने इस संबंध में दिव्या गोस्वामी केस में दिए अपने ही निर्णय में संशोधन करते हुए सिर्फ मौजूदा सत्र के लिए यह मंजूरी दी थी.
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