Rahul Gandhi Dual Citizenship: इलाहाबाद हाईकोर्ट का गृह मंत्रालय को अल्टीमेटम, कहा- चार सप्ताह में फैसला करें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता मामले में केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है. अदालत ने कहा कि मामले में आप चार हफ्ते के अंदर फैसला करें.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता मामले में केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है. अदालत ने कहा कि मामले में आप चार हफ्ते के अंदर फैसला करें.

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Jalaj Kumar Mishra
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Rahul Gandhi File

Rahul Gandhi (Photo: Social Media )

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता के मुद्दे पर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चार सप्ताह का वक्त दिया है. मंत्रालय ने मामले में आठ सप्ताह की मोहलत मांगी थी, कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया और चार सप्ताह के अंदर इस पर फैसला करने के लिए कहा.

ये है पूरा मामला

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बता दें, राहुल गांधी पर आरोप है कि उनके पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है. राहुल पर ये आरोप लंबे वक्त से चले आ रहे हैं. एक जनहित याचिका इस मामले में दायर की गई थी, जिस पर अब सुनवाई हो रही है. बता दें, कर्नाटक के सामाजिक कार्यकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने ये जनहित याचिका दायर की है. उनका कहा है कि दोहरी नागरिकता के चलते राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ सकते. राहुल गांधी पर आरोप अगर सिद्ध होता है तो उनकी सांसदी छीनी जा सकती है.   

मामले में आखिरी सुनवाई 19 दिसंबर को थी. उस वक्त अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे 24 मार्च को कार्रवाई का ब्यौरा पेश करे लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर पाई. 

राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता रद्द करने की मांग

बता दें, पिछले साल एक जुलाई को भाजपा नेता और वकील एस विग्नेश शिशिर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिका में राहुल गांधी पर लगाए गए आरोप ब्रिटिश सरकार के 2022 के गोपनीय मेल के हवाले से लगाए गए थे. याचिका में उन्होंने राहुल गांधी की भारतीय नगरिकता, भारतीय नागरकिता अधिनियम 1955 की धारा 9 (2) के तहत रद्द करने की मांग की. 

मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं

याचिका में कहा गया कि राहुल गांधी ने अपनी ब्रिटिश नागरिकता छिपाकर रायबरेली से चुनाव लड़ा था. उनका चुनाव इसलिए रद्द किया जाए. याचिकाकर्ता का आरोप है कि उसने बहुत सारे अधिकारियों के समक्ष इस मामले को उठाया लेकिन मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसलिए उन्हें जनहित याचिका का सहारा लेना पड़ा.

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