अखिलेश सीएए पर बहस को तैयार, 'डंके की चोट' शब्द को लेकर तंज कसा, कही ये बात...
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा कि वह नागरिकता कानून (सीएए) और विकास को लेकर भाजपा के लोगों से बहस के लिए तैयार हैं.
लखनऊ:
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा कि वह नागरिकता कानून (सीएए) और विकास को लेकर भाजपा के लोगों से बहस के लिए तैयार हैं. उन्होंने अमित शाह के कहे शब्द 'डंके की चोट' पर तंज कसते हुए कहा कि यह राजनेताओं की भाषा नहीं हो सकती. बुधवार को जनेश्वर मिश्र की पुण्यतिथि पर जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा कि बहुमत के कारण भाजपा आम लोगों की आवाज नहीं दबा सकती. उन्होंने कहा कि भाजपा जब चाहे तब, सीएए और विकास के मुद्दे पर उनसे बहस करने को वह तैयार हैं. वह उन्हें सिर्फ जगह और मंच के बारे में बता दे.
अखिलेश बोले, "सीएए का विरोध सिर्फ सपा ही नहीं कर रही है, समूचे देश में लोग सड़कों पर उतर आए हैं, बड़ी संख्या में महिलाएं भी धरना दे रही हैं. भाजपा वाले धर्म के नाम पर नागरिकों के साथ भेदभाव कब तक करेंगे. वोट के लिए भारत की आत्मा को क्यों खत्म कर रही है भाजपा?"
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "डंके की चोट पर.. यह राजनेताओं की भाषा नहीं हो सकती. कितनी अफसोस की बात है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व श्रीकृष्ण की धरती पर, हमारे प्रदेश में आज राजनेता ठोक दिया जाएगा, जबान खींच ली जाएगी.. जैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं."
सपा मुखिया ने कहा कि उनके साथ बहस में विकास मुद्दा होगा, नौकरियों का अभाव मुद्दा होगा, किसानों के मुद्दे होंगे, नौजवानों के मुद्दे होंगे. भाजपा लगातार मुद्दों से भटकाने की राजनीति कर रही है. खासतौर से पूरे देश को जाति और धर्म के नाम पर बांटकर नफरत फैला रही है.
उन्होंने कहा, "छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र ने समाज में समानता लाने के लिए संघर्ष किया. समाज में खाई को पाटने का काम किसी ने किया तो वह छोटे लोहिया ही थे. जो रास्ता छोटे लोहिया ने दिखाया, उसी रास्ते पर हम चलेंगे."
अखिलेश ने जातीय जनगणना की मांग करते हुए कहा कि जातीय जनगणना से भाजपा डर क्यों रही है? अगर जातीय जनगणना हो जाए तो हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा ही खत्म हो जाएगा.
उन्होंने कहा, "तीन साल से जो बाबा मुख्यमंत्री बने बैठे हैं, भी कुछ नहीं कर पाए. बाबा किसानों को जानवरों से नहीं बचा पाए. अब तो किसानों के बाद नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं. सबसे ज्यादा किसानों की जान महोबा में गई."
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