उपचुनाव के बाद UP से ही चुना जा सकता है कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष, ये है कारण
उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए प्रियंका गांधी ने इसी साल जनवरी महीने में सक्रिय राजनीति में एंट्री करने के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी की जिम्मेदारी संभाली थी.
highlights
- जिला स्तर पर संगठन को मजबूत कर रही हैं प्रियंका
- ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो जनता से सीधे तौर पर जुड़ा हो
- प्रियंका गांधी ही बीजेपी के खिलाफ मोर्चा संभालेंगी
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए प्रियंका गांधी ने इसी साल जनवरी महीने में सक्रिय राजनीति में एंट्री करने के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी की जिम्मेदारी संभाली थी. सक्रिय राजनीति में आने के बाद जब प्रियंका पहली बार लखनऊ पहुंची थी तो पिछले कई दशक बाद सड़कों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सैलाब नजर आया था और उस वक्त ये माना जा रहा था कि प्रियंका के आने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यूपी में बेहतर प्रदर्शन करेगी.
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हालांकि कांग्रेस इस बार 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले भी प्रदर्शन नहीं कर पाई और प्रियंका के प्रभार क्षेत्र से ही अमेठी की सीट पर भाई राहुल गांधी चुनाव हार गए. प्रियंका की सक्रियता के बावजूद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के इस बदतर प्रदर्शन के चलते एक बार फिर पार्टी कार्यकर्ता मायूस हो गए और कांग्रेस वहीं आ खड़ी हुई जहां से प्रियंका ने शुरुआत की थी. हालांकि लोकसभा चुनावों में मिली हार के बावजूद प्रियंका ने पार्टी कार्यकर्ताओं की इस उदासीनता को खत्म करने के लिए वो सभी कोशिशें की जो जनहित से जुड़े मुद्दों पर सरकार के खिलाफ पार्टी के आक्रामक तेवर दिखाने के लिए जरूरी है.
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प्रियंका न सिर्फ सोशल मीडिया में जनसरोकार और यूपी की कानून-व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर लगातार सक्रियता दिखाई बल्कि सोनभद्र नरसंहार मामले में पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए धरना देकर उन्होंने राज्य सरकार को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया. यही वजह है कि एक बार फिर संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रियंका की सक्रियता बढ़ी है और जिस तरह लखनऊ में पूर्वी यूपी क्षेत्र का जिलेवार फीडबैक लेकर संगठन की खामियां ढूंढने की कोशिश की थी. अब ठीक वैसे ही दिल्ली में पश्चिमी यूपी के जिलों का फीडबैक लेकर यूपी की राजनीति को पूरी तरह से समझने की कोशिश कर रही हैं.
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इस बार प्रियंका की कोशिश प्रदेश और जिले स्तर पर संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की है और इसके लिए प्रियंका की तलाश सबसे पहले ऐसे प्रदेश अध्यक्ष की है जो यूपी का ही रहने वाला हो और जनता से सीधे तौर पर जुड़ा हो. राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रियंका गांधी की ये कवायद उस रणनीति का हिस्सा है जो विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद यूपी कांग्रेस में देखने को मिलेगी क्योंकि प्रियंका की नजर 2022 के विधानसभा चुनाव पर है.
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तब तक अगर प्रियंका अपनी रणनीति के तहत कांग्रेस को एक नई धार देने में कामयाब रहती है तो यूपी में बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाले वोट के लिए कांग्रेस एक मजबूत और बेहतर विकल्प साबित हो सकती है. यही वजह है कि विधानसभा उपचुनावों में प्रियंका की सक्रियता न के बराबर है. एक ओर प्रियंका की रणनीति और नेतृत्व को लेकर पार्टी कार्यकर्ता एक बार फिर उत्साहित नजर आ रहे है और उनका मानना है कि प्रियंका गांधी ही बीजेपी सरकार के खिलाफ सड़क पर मोर्चा संभालेंगी. वहीं बीजेपी समेत अन्य सियासी दल अभी भी सड़क की राजनीति करने से पहले प्रियंका गांधी को अपना संगठन मजबूत करने की नसीहत दे रहे है.
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