यूपी चुनाव 2017: अखिलेश की समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन तय, सिर्फ औपचारिक ऐलान बाकी!
उत्तर प्रदेश का सियासी मैदान सज चुका है। खबर है कि कांग्रेस और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी साथ चुनाव लड़ सकती हैै।
highlights
- उत्तर प्रदेश में साथ चुनाव लड़ेगी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस
- चुनाव आयोग के फैसले के बाद गठबंधन की हो सकती है औपचारिक घोषणा
- कांग्रेस, सपा के गठबंधन में आरएलडी भी गठबंधन में हो सकती है शामिल
नई दिल्ली:
समाजवादी पार्टी की 'साइकिल' अखिलेश यादव की होगी या उनके पिता मुलायम सिंह की इसपर भले ही फैसला नहीं हो पाया है लेकिन एक बात लगभग तय है कि अखिलेश को 'हाथ' का साथ मिलेगा। यानी कांग्रेस और अखिलेश गुट की समाजवादी पार्टी अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव साथ लड़ेगी। इसके लिए सिर्फ औपचारिक ऐलान बाकी है।
पारीवारिक लड़ाई से जूझ रही समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि कांग्रेस से गठबंधन करने पर काफी फायदा होगा। वहीं राज्य में कमजोर कांग्रेस के लिए भी गठबंधन संजीवनी का काम करेगा।
गठबंधन का ऐलान 'साइकिल' पर चुनाव आयोग (EC) का फैसला सोमवार को आने के बाद किया जा सकता है। EC का फैसला अखिलेश के पक्ष में आये या विरोध में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन तय मानी जा रही है।
खबर है कि दोनों दलों के बीच गठबंधन में कांग्रेस में परदे के पीछ काम कर रहीं प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव बड़ी भूमिका निभा रही हैं। वहीं पिछले दिनों प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी फोन पर बात की थी।
कांग्रेस देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले 27 सालों से बाहर है। वहीं समाजवादी पार्टी अखिलेश के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। लेकिन परिवार की लड़ाई अखिलेश को नुकसान पहुंचा सकता है। गठबंधन दोनों ही दलों पर मरहम लगाने का काम करेगा।
खबर यह है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन में अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) भी साथ आ सकती है। हालांकि विधानसभा सीटों को लेकर सहमति नहीं बन पायी है। वहीं समाजवादी पार्टी का मुलायम धड़ा भी आरएलडी के संपर्क में है।
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खबर यह भी है कि चुनाव आयोग अगर एसपी का चुनाव चिन्ह जब्त कर लेता है तो मुलायम सिंह यादव आरएलडी के चिन्ह पर चुनाव लड़ सकते हैं।
जातिगत समीकरण बैठाने की कोशिश
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आरएलडी की यादव, जाट और मुस्लिम वोट पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में गठबंधन अखिलेश यादव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाकर 2019 लोकसभा चुनाव के लिए नयी सियासी तस्वीर पेश कर सकती है। गठबंधन के लिए आतूर कांग्रेस को सबसे अधिक फायदा हो सकता है।
उत्तर प्रदेश में करीब 17 प्रतिशत वोटर मुस्लिम वर्ग, 12 प्रतिशत यादव और जाट 5 प्रतिशत से आते हैं। कांग्रेस, एसपी और आरएलडी के एक साथ होने पर अन्य पिछड़े वर्गों का वोट भी मिल सकता है। टिकट बंटवारों में भी जातिगत समीकरणों का खास तौर पर ख्याल रखा जाएगा।
गठबंधन में कांग्रेस करीब 100, आरएलडी करीब 20 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। जबकि बाकी सीटों पर समाजवादी पार्टी अपना उम्मीदवार उतारेगी। यूपी में विधानसभा की 403 सीट है।
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तीनों ही दलों में निर्णय लेने की शक्ति युवा हाथों (राहुल गांधी, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी) में है। ऐसे में युवा वोटरों का रूझान भी गठबंधन की तरफ बढ़ सकता है। 2012 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को युवा वोटरों का साथ मिला था।
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आरएलडी की मौजूदा स्थिति
लोकसभा चुनाव 2014 में तीनों दलों बीजेपी के आगे नतमस्तक दिखी। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सिर्फ परिवार की सीट बचा सकी जबकि आरएलडी को एक भी सीट हासिल नहीं हुआ।
वहीं मौजूदा यूपी विधानसभा में सपा के पास 229, कांग्रेस के पास 29 और आरएलडी के पास 8 सीटें हैं। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में पैदा हुई राजनीतिक स्थिति तीनों दलों के लिए गठबंधन मजबूरी भी है और मजबूती भी।
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कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में प्रोफेशनल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को फिलहा प्रचार की जिम्मेदारी दी है। वह बिहार फॉर्मूले पर उत्तर प्रदेश में महा-गठबंधन की कोशिश कर चुके हैं।
समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव सीएम के चेहरे हैं जबकि कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चेहरा बनाया है। ऐसे में अगर गठबंधन होता है तो कांग्रेस शीला दीक्षित के नाम को वापस लेगी। पिछले दिनों एक टीवी न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए शीला दीक्षित ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सीएम पद के लिए मुझसे बेहतर प्रत्याशी हैं।
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