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CM Yogi Adityanath( Photo Credit : ani)
गोरक्षपीठ में आज ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की 53 वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में देश भर से साधु सन्यासी और नाथ योगी पहुंचे हैं. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सीएम योगी आदित्यनाथ ने की. इसके अलावा इस कार्यक्रम में अयोध्या से आए कथाव्यास स्वामी श्रीधराचार्य स्वामी राम दिनेशाचार्य, स्वामी विश्वेश प्रपन्नाचार्य, जूनागढ़, गुजरात से आये महन्त शेरनाथ, रोहतक हरियाणा से आए सांसद और महन्त बालकनाथ, पूर्व मेजर जनरल डॉ. अतुल वाजपेई, अमृतनाथ आश्रम राजस्थान से आए महन्त नरहरिनाथ, कालिका मन्दिर, नई दिल्ली से आए महन्त सुरेन्द्रनाथ, नैमिषारण्य से आए स्वामी विद्या चैतन्य, दुग्धेश्वरनाथ मन्दिर, गाजियाबाद से आए महन्त नारायण गिरी, नीमच, मध्य प्रदेश से आये महन्त लालनाथ, श्रृंगेरी, कर्नाटक से आए योगी कमलचन्द्रनाथ, भीडभंजन, गुजरात से आये महन्त कमलनाथ, हनुमानगढ़ी, अयोध्याधाम से आए महन्त राजूदास, भुज, गुजरात से आए योगी देवनाथ, हरिद्वार से आए योगी चेताईनाथ सहित दर्जनों साधू सन्यासियों ने दिवंगत महंत दिग्विजय नाथ को श्रद्धांजलि दी.
धर्म को सियासत के साथ जोड़ने की शुरुआत गोरक्षपीठ में सबसे पहले महंत दिग्विजयनाथ ने की थी. अयोध्या से 137 किलोमीटर पूरब में स्थित गोरखनाथ मठ या गोरक्षपीठ ब्रिटिश काल में ही रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का केंद्र बिंदु बन गया था. साल 1935 में महंत दिग्विजयनाथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर बने. यह वह दौर था जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था और पूर्वांचल में राम मंदिर आंदोलन शुरू हो गया था. महंत दिग्विजय नाथ की आभा ऐसी थी कि कुछ समय में ही उनका मठ दक्षिणपंथी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया. राम मंदिर के लिए सबसे मुखर होने की वजह से इसके साथ ही वह मंदिर आंदोलन के अगुआ बन गए. साल 1937 में हिन्दू महासभा में शामिल होने के बाद उन्होंने हिन्दू समाज को तेजी से राममंदिर के लिए एकजुट करना शुरू किया. उन्होंने अयोध्या में स्वयंसेवकों की टीम का नेतृत्व किया. बलरामपुर के राजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह और प्रसिद्ध संत स्वामी करपात्री महराज के साथ बैठक कर रामजन्मभूमि मुक्ति की रणनीति बनाई. उसी समय से अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के बैनर तले आंदोलन तेज होने लगा. 22.23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला के प्राक्टय के समय महंत दिग्विजयनाथ वहां मौजूद थे.
महंत दिग्विजयनाथ नेतृत्व में अयोध्या में कीर्तन.भजन शुरू हो गया. हालांकि उस समय की सरकार ने तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट को मूर्ति हटाने का हुक्म दिया लेकिन मजिस्ट्रेट ने यह कहकर मानने से इनकार कर दिया कि इससे साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकते हैं. माना जाता है कि आजाद भारत में यहीं से रामजन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष शुरू हुआ. यह लड़ाई सड़क, संसद, न्यायालय में एक साथ चली. महंत दिग्विजयनाथ हर जगह सबसे आगे नजर आए. उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस तक रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए संघर्ष किया. उनके बाद महंत अवेद्यनाथ ने अपने गुरु की मशाल थाम राममंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया. बिना शिक्षा के कोई भी समाज आगे नहीं आ सकता इसी सोच को लेकर साल 1932 में महंत दिग्विजयनाथ ने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की थी जो एक विद्यालय से शुरू होकर आज 50 से अधिक संस्थाओं का केंद्र बन चुका है. इस शिक्षा परिषद के तहत विश्वविद्यालय से लेकर प्राइमरी स्कूल और मेडिकल कालेज भी संचालित हो रहे हैं.
Source : Deepak Shrivastava