दिहुली नरसंहार मामले में मैनपुरी कोर्ट ने आरोपियों को मृत्युदंड दे दिया. आरोपियों को 50 हजार रुपये का फाइन भी भरना पड़ेगा. दिहुली नरसंहार चार दशक पहले घटित हुआ था. अब करीब 46 साल बाद अदालत ने तीन लोगों को फांसी की सजा सुनाई है.
क्या था पूरा मामला?
दरअसल, 17 हथियारबंद डकैतों ने 18 नवंबर 1981 को फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी थी. हमले में 23 लोगों की मौत हो गई. वहीं, एक व्यक्ति ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. इस प्रकार से हत्याकांड में 24 दलितों की हत्या कर दी गई. घटना के बाद स्थानीय निवासी लैइक सिंह की तहरीर पर केस दर्ज किया गया है. पुलिस की जांच में 17 डकैतों को आरोपी माना गया है. आरोरपियों में गिरोह के सरगना संतोष सिंह उर्फ संतोसा और राधेश्याम उर्फ राधे भी शामिल थे. एफआईआर में दर्ज 17 में से 13 लोगों की मौत हो गई. एक आरोपी अब भी फरार हैं.
पीड़ित परिवार से मिली थीं इंदिरा गांधी, वाजपेयी ने की थी पैदल यात्रा
हत्याकांड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवार के लोगों से मुलाकात की, जबकि विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना व्यक्ति करने के लिए दिहुली से फिरोजाबाद के सादुपुर तक पैदल यात्रा की.
चार दशक बाद मिला न्याय
अदालत के फैसले के बारे में शासकीय अधिवक्ता रोहित शुक्ला ने कहा कि चार दशक बाद पीड़ित परिवारों को न्याय मिला है. यह एक ऐतिहासिक फैसला है. समाज में इससे संदेश जाएगा कि कोई भी अपराधी कानून से नहीं बच सकता.
अब आगे क्या?
अब मैनपुरी की अदालत के फैसले के बाद दोषियों के पास उच्च न्यायालय यानी हाईकोर्ट में अपील करने का विकल्प मिलेगा. अदालत के फैसले को पीड़ित परिवार ने न्याय की जीत कहा है.