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सबरीमाला मंदिर का कपाट खुला, पूजा करने आईं 10 महिलाओं को पुलिस ने भेजा वापस

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) मामले को उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ में भेज दिया है. भगवान अयप्पा मंदिर का कपाट शनिवार को खुल गया है.

Updated on: 16 Nov 2019, 05:21 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) मामले को उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ में भेज दिया है. भगवान अयप्पा मंदिर का कपाट शनिवार को खुल गया है. इसे लेकर पुलिस ने पंबा की 10 महिलाओं को वापस भेज दिया है. ये महिलाएं (10 से 50 वर्ष की उम्र के बीच) आंध्र प्रदेश से मंदिर में पूजा करने के लिए आई थीं. बता दें कि मंदिर खुलने के बाद वहां लोग पूजा-पाठ कर रहे हैं, लेकिन इस मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं होने दिया जा रहा है. 

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बता दें कि केरल सरकार ने कहा था कि जो महिलाएं मंदिर में प्रवेश करना चाहती है उन्हें ‘अदालती आदेश’ लेकर आना होगा. शीर्ष अदालत ने इस धार्मिक मामले को बड़ी पीठ में भेजने का निर्णय किया था. शीर्ष अदालत ने पहले पिछले साल रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी. 17 नवंबर से शुरू होने वाले दो महीने की लंबी वार्षिक तीर्थयात्रा सत्र के लिए आज मंदिर खुल रहा है. केरल के देवस्वओम मंत्री के सुरेंद्रन ने शुक्रवार को कहा था कि सबरीमला आंदोलन करने का स्थान नहीं है और राज्य की एलडीएफ सरकार उन लोगों का समर्थन नहीं करेगी जिन लोगों ने प्रचार पाने के लिए मंदिर में प्रवेश करने का ऐलान किया है.

भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने वाली महिला कार्यकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा प्रदान किए जाने संबंधी खबरों को खारिज करते हुए सुरेंद्रन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले को लेकर कुछ भ्रम है और सबरीमला मंदिर जाने की इच्छुक महिलाओं को अदालत का आदेश लेकर आना चाहिए. उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इस मामले पर फैसला देते हुए इसे बड़ी पीठ को सौंपने का निर्णय किया है. इसी परिप्रेक्ष्य में संवाददाताओं के पूछे गए सवाल का जवाब सुरेंद्रन दे रहे थे. मंत्री ने कहा था कि सबरीमला आंदोलन करने वालों के लिए स्थान नहीं है. कुछ लोगों ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर मंदिर में प्रवेश करने की घोषणा की है. वे लोग केवल प्रचार के लिए ऐसा कर रहे हैं. सरकार इस तरह की चीजों का समर्थन नही करेगी.

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सबरीमला मंदिर में निहत्थी महिलाओं को प्रवेश से रोके जाने को दुखद स्थिति करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है. इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है, जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी. फैसले में कहा गया, “...फैसले का अनुपालन वैकल्पिक मामला नहीं है. अगर ऐसा होता, तो अदालत का प्राधिकार उन लोगों द्वारा वैकल्पिक तौर पर कम किया जा सकता था जो उसके फैसलों के अनुपालन के लिये बाध्य हैं.”